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रीतिकाल के अन्य कवि

रचना है, क्योंकि उसमें धर्म और नीति के उपदेश है। रामसहाय का कविताकाल संवत् १८६० से १८८० तक माना जा सकता है। नीचे सतसई के कुछ दोहे उद्धृत किए जाते हैं––

गढ़े नुकीले लाल के नैन रहैं दिन रैनि।
तब नाजुक ठोढ़ी न क्यों गाड़ परै मृदुबैनि?
भटक न, झटपट चटक कै अटक सुनुट के संग।
लटक पीतपट की निपट हटकति कटक अनंग॥
लागै नैना नैन में कियो कहा धौ मैन।
नहिं लागै नैना, रहैं लागे नैना नैन॥
गुलुफनि लगि ज्यों त्यों गयो, करि करि साहस जोर।
फिर न फिरयो मुरवान चपि, चित अति खात मरोर॥
यौ बिभाति दसनावली ललना बदन मँझार।
पति को नातो मानि कै मनु आई उडुमार॥

(४२) चद्रशेखर––ये वाजपेयी थे। इनका जन्म संवत् १८५५ में मुअज्जमावाद (जिला फतहपुर) में हुआ था। इनके पिता मनीरामजी भी अच्छे कवि थे। ते कुछ दिनों तक दरभंगे की ओर, फिर ६ वर्ष तक जोधपुरनरेश महाराजा मानसिंह के यहाँ रहे। अंत में पटियाला-नरेश महाराज कर्मसिंह के वहाँ गए और जीवन भर पटियाले में ही रहे। इनका देहान्त संवत् १९३२ में हुआ। अतः ये महाराज नरेंद्रसिंह के समय तक वर्तमान थे और उन्हीं के आदेश से इन्होंने अपना प्रसिद्ध वीरकाव्य "हम्मीरहट" बनाया। इसके अतिरिक्त इनके रचे ग्रंथों के नाम ये है––

विवेक-विलास, रसिकविनोद, हरिभक्ति-विलास, नखशिख, वृंदावन-शतक, गुपपंचाशिका, ताजक ज्योतिष, माधवी बंसत।

यद्यपि शृंगाररस की कविता करने में भी ये बहुत ही प्रवीण थे पर इनकी कीर्ति को चिरकाल तक स्थिर रखने के लिये "हम्मीरहठ" ही पर्याप्त है। उत्साह की, उमंग की व्यंजना जैसी चलती, स्वाभाविक और जोरदार भाषा में इन्होंने की है वैसे ढंग से करने में बहुत ही कम कवि समर्थ हुए है। वीररस