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हिंदी-साहित्य का इतिहास


सेवक––ये असनीवाले ठाकुर कवि के पौत्र थे और काशी के रईस बाबू देवकीनंदन के प्रपौत्र बाबू हरिशंकर के आश्रय में रहते थे। ये ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। इन्होंने "वाग्विलास" नाम का एक बड़ा ग्रंथ नायिकाभेद का बनाया। इसके अतिरिक्त बरवा छंद में एक छोटा नख-शिख भी इनका है। इनके सवैये सर्व साधारण में प्रचलित हो गए थे। "कवि सेवक बूढ़े भए तौ कहा पै हनोज है मौज मनोज ही की" कुछ बुड्ढे रसिक अब तक कहते सुने जाते हैं। इनका जन्म संवत् १८७२ में और मृत्यु संवत् १९३८ में हुई।

महाराज रघुराजसिंह रीवाँनरेश––इनका जन्म संवत् १८८० में और मृत्यु संवत् १९३६ में हुई। इन्होंने भक्ति और शृंगार के बहुत से ग्रंथ रचे। इनका "राम स्वयंवर" (सं॰ १९२६) नामक वर्णनात्मक प्रबंध-काव्य बहुत ही प्रसिद्ध है। वर्णनों में इन्होंने वस्तुओं की गिनती (राजसी ठाट बाट, घोड़ों, हाथियों के भेद आदि) गिनानेवाली प्रणाली का खूब अवलंबन किया है। 'राम-स्वयंवर' के अतिरिक्त 'रुक्मिणी-परिणय', 'आनंदाबूनिधि', 'रामाष्टयाम', इत्यादि इनके लिखे बहुत से अच्छे ग्रंथ हैं।

सरदार––ये काशीनरेश महाराज ईश्वरीप्रसादनारायण सिंह के आश्रित थे। इनका कविता काल संवत् १९०२ से १९४० तक कहा जा सकता है। ये बहुत ही सिद्धहस्त और साहित्य-मर्मज्ञ कवि थे। 'साहित्य सरसी', 'वाग्विलास', 'षट्ऋतु', 'हनुमतभूषण', 'तुलसीभूषण', 'शृंगारसंग्रह', 'रामरत्नाकर', साहित्य-सुधाकर', रामलीला-प्रकाश' इत्यादि कई मनोहर काव्य-ग्रंथ इन्होंने रचे हैं। इसके अतिरिक्त, इन्होंने हिंदी के प्राचीन काव्यों पर बड़ी बड़ी टीकाएँ भी लिखी हैं। कविप्रिया, रसिकप्रिया, सूर के दृष्टिकूट और बिहारी सतसई पर इनकी बहुत अच्छी टीकाएँ हैं।

बाबा रघुनाथदास रामसनेही––ये अयोध्या के एक साधु थे और अपने समय के बड़े भारी महात्मा माने जाते थे। सं॰ १९११ में इन्होंने 'विश्रामसागर' नामक एक बड़ा ग्रंथ बनाया जिसमें अनेक पुराणो की, कथाएँ संक्षेप में दी गई हैं। भक्तजन इस ग्रंथ का बड़ा आदर करते हैं।

ललितकिशोरी––इनका नाम साह कुंदनलाल था। ये लखनऊ के एक