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थे | यदि आवश्यकता पड़ी तो वह इतने अस्पष्ट हो जाते थे जितना ‘स्फिक्स', और दूसरे ही छंद में प्रकाश की किरण के समान स्पष्ट । अन्य कवि किसी एक गुण में उनकी समता कर सकते हैं, पर वह सभी के श्रेष्ठ गुणों से संयुक्त हैं। भारतीय लोग इनको कीर्ति के सर्वोच्च गवाक्ष में स्थान देते हैं, पर मेरा विश्वास है कि यूरोपीय पाठक आगरा के अन्धे कवि की अत्यधिक माधुरी की अपेक्षा तुलसीदास के उदार चरित्रों को अधिक पसंद करेगा । टि०-सूरदास ने तो अकबरी दरबार के गवैए थे और न अकबरी दरबार के गायक रामदास इनके पिता ही थे। --सर्वेक्षण ७३३, ९२८

भक्तमाल में सूरदास का विवरण छप्पय ७३ में है, पर इसमें इनके कौकिक जीवन की कोई बात नहीं आई है। प्रियादास ने इनकी टीका में एक भी कवित्त नहीं लिखा है। प्रियादास की टीका सं० १७६९ में सुर की मृत्यु के लगभग सवा सौ या डेढ़ सौ वर्ष बाद लिखी गई थी । ग्रियर्सन का यह श्रमिक उल्लेख भारतेंदु के आधार पर है। भारतेंदु के ही आधार पर यह सारा विवरण है ( भारतेंदु ग्रंथावली भाग ३ पृष्ठ ७१-७७ ) । यहाँ तक कि पाद टिप्पणियाँ भी भारतेंदु की ही पाद टिप्पणियों का अनुवाद हैं।

  सूरदास के दृष्टिकूटों वाले ग्रंथ से अभिप्राय 'साहित्य लहरी' से है । इनकी मूल टिप्पणियों के लिए भारतेंदु ने संभावना व्यक्त की है कि ये स्वयं सूरदास की है। प्रसंग-प्राप्त पद यह है-

प्रथम ही प्रथ जगत में प्रगट अद्भुत रूप

ब्रह्मराव बिचारि ब्रह्मा राखु नाम अनूप

पान पयं देवी दियो सिव आदि सुर सर पाय

कह्यौ दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति अधिकाय

पारि पायन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन

तासु वंश प्रसिद्ध मैं भौ चन्द चारु नवीन

भूप पृथ्वीराज दीन्हों तिन्हैं ज्वाला देस

तनय ताके चार, कीन्ह प्रथम आप नरेस


१. जैसा कि किसी अज्ञात कवि ने कहा है- उत्तम पद कवि गंग के उपमा को बलवीर । केशव अर्थ गंभीरता सूर तीन गुन धीर । नोट--अंगरेजी में इस दोहे की भावार्थ दिया गया है, मूल रूप में दोहा ही नहीं है। | ---अनुवादक