पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(११७)


इस अफ़वाह की सच्चाई की जाँच के लिए एक अहदी नगरकोट भेजा गया, तब कहीं जाकर यह साबित हुआ कि यह बे सिर पैर की बात थी। फिर कुछ दिनों बाद बादशाह सलामत के पास खबर आई कि बीरबल कालिंजर में देखा गया है, (जो कि उस कुत्ते की जागीर थी), और उस जिले के करोड़ी ने बताया कि एक नाई ने उसके शरीर पर के कुछ चिह्नों की सहायता से उसे पहचाना है, जिनको उसने साफ़ साफ़ देखा था, जब कि बीरबल ने उसे एक दिन मालिश के लिए बुलाया था । जो हो, बीरबल उस समय से छिप गया है । तब बादशाह सलामत ने नाई को दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया और हिन्दू करोड़ी ने वेचारे किसी मुसाफ़िर को पकड़ा, उस पर कत्ल का जुर्म लगाया और कैद कर दिया तथा जाहिर किया कि वह बीरबल है। असलित तो यह है कि करोड़ी नाई को दरबार में भेज नहीं सकता था। इसलिए उसने इस कम्बखत मुसाफ़िर को मार डाला, जिससे शिनाख्त न हो सके और खबर दी कि वाकई बीरबल ही था, मगर अब वह मर गया। बादशाह सलामत को दूसरी बार गम मनाना पड़ा और उन्होंने करोड़ी और अन्य अनेक लोगों को दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया। पहले ही सूचना न देने के सबन्न से वे सब सज़ा के तौर पर कुछ दिनों तक सताए गए, पर करोड़ी को तो भारी जुरमाना भी देना पड़ा।

बीरबल ने अकबर पुर नामक कस्बा बसाया था और वहीं रहते थे। उस कस्बे के नारनौल नामक हिस्से में उनके वंशज अब भी रहते हैं। बीरबल की कोई पूर्ण कृति हम तक नहीं पहुँच सकी है। लेकिन अनेक कविताएँ और चुटकुले जो उनके कहे जाते हैं, अब भी हर हिन्दू की जबान पर हैं। किसी अज्ञात लेखक का लिखा हुआ 'बीरवर नामा' नामक ग्रंथ बिहार के किसी भी बाजार में चन्द पैसों में खरीदा जा सकता है। यह काल्पनिक ' कहानियों का संग्रह है, जिसके पात्रं अकबर और बीरबल है, जिसमें बीरबल अपनी हाजिर जवाबी या भद्दे चुटकुलों से हमेशा जीतता है। वस्तुतः यह- 'जो मिलर्स जेस्टबुक' का भारतीय प्रतिरूप है। कुछ कहानियाँ तो सार्व-देशिक हैं।

टि-बीरबल जाति के ब्रह्मभट्ट थे। अपनी जाति के ही आधार पर उन्होंने अपना उपनाम ‘ब्रह्म' रखा था ।

सरोज में दिया संवत् १५८५ विक्रम संवत् नहीं है। यह ईस्वी सन् में

कवि का उपस्थितिकाल है । बीरबल के जन्मकाक पर अभी और विचार की आवश्यकता है। -सर्वेक्षण १९७