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१०७. मनोहरदास कवि--कवि और राजा मनोहरदास कछवाहा । १५७७ ई० में उपस्थित ।

यह राजा लूनकरन कछवाहा का बेटा और अकबरी दरबार के चार सौ मनसबदारों में से एक थे । ( देखिए आईन-ए-अकबरी, अनुवाद, पृष्ठ ४९४ )यह फारसी में तोशनी नाम से लिखते थे ।

१०८. अब्दुलरहीम खानखाना, नवाब । सामान्यतया खानखाना नाम से | ही अभिहित; बैरम खाँ के पुत्र, जन्म १५५६ ई० ।

काव्यनिर्णय । यह अरबी फारसी और तुर्की इत्यादि के ही विद्वान् नहीं थे, संस्कृत और व्रज भाषा के भी थे । अकबर इन्हें बहुत चाहता था । (देखिए,आईन-ए-अकबरी का व्लाचमैन कृत अनुवाद, पृष्ठ ३३४ और आगे।| यह रहीम नाम से लिखते थे--- पृष्ठ ३३८)। इनके पिता प्रसिद्ध बैरम खाँ थे,वस्तुतः जिनकी बदौलत हुमायूं ने हिन्दुस्तान जीता था । ( देखिए ब्लॉचमैन पृष्ठ ३१५ ) । इनके जीवन के पूर्ण विवरण ऊपर कथित अंशों में मिलेंगे । शिव सिंह लिखते हैं कि यह कवियों के बहुत बड़े आश्रयदाता ही नहीं थे, स्वयं भी संस्कृत में अत्यन्त कठिन श्लोक लिखा करते थे । भाषा की प्रत्येक शैली में लिखित इनके कवित्त और दोहे अत्यन्त प्रशंसनीय हैं। इनमें सर्वश्रेष्ठ ।इनके नीति सम्बन्धी दोहे । यहाँ उनकी पारसी कृतियों का विचार नहीं किया जा रहा है । इनके सर्व प्रसिद्ध फ़ारसी ग्रंथ,वाकयाते बाबरी, बाबर चुगताई के संस्मरणों के अनुवाद का उल्लेख कर देना ही पर्याप्त है। इनके दरबारो कवियों में से मिथिला के लक्ष्मीनारायण ( सं० १२४ ) का उल्लेख किया जा सकता है।

पुनश्चः—यह कवि गंग ( संख्या ११९) के आश्रयदाता थे। गंग ने अपनी एक रचना में इनकी और इनके पुत्र तुराब खाँ की प्रशंसा की है।

टि–सरोज में दिया सं० १५८० ईस्वी सन में झवि की उपस्थितिकाल है । सरोजकार ने जन्मका नहीं दिया है, जैसा कि टिप्पणी में ग्रियर्सन ने संकेत किया है।

१०९. मानसिंंह-आमेर के महाराज मानसिंह कछवाहा | जन्म १५३५ ई० । यह विद्वानों के बहुत बड़े संरक्षक थे और हरिनाथ (सं० ११५) आदि कवियों को एक-एक कविता पर लाख-लाख रुपया दे दिया करते थे। वह भगवानदास के पुत्र थे । ( देखिए आईन-ए-अकबरी, अनुवाद, पृष्ठ ३३९, जहाँ इनके १

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अर्थात् ९६४ हिज्री, जो कि ब्लाचमैन' द्वारा नीचे उद्धृत अवतरण में दी हुई तिथि है। शिव सिंह संवत १५८० अर्थात् १५२३ ई० तिथि देते हैं।