पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१५५

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( १४४ ) सुनिअ तासु गुन ग्राम,... .. जासु नाम अघ खग बधिक ॥३०॥ इति श्री रामचरित मानसे सकल कलि कलुष विध्वंसने विसुद्ध संतोष . संपादिनी: नाम चतुर्थस्सोपानः समातः || शुभम् अस्तु ।। संवत १७०४ समए, पौख शुदि द्वारसी लिखितं रघु तिवारी कास्यां । .. लंका कांड का अन्त ( बनारस प्रति) "छन्द--(मति मन्द तुलसी) दास सो प्रभु मोह बस विसराइयो । यह रावनारि. चरित्र पावन रामपद रति प्रद सदा । कामादि हर विग्यान कर सुर सिद्ध मुनि गावहि मुदा ।। दोहा-समर विजय रघु मनि चरित', .. सुनहिं जे सदा सुजान। विजय विवेक विभूति नित, तिन्हहिं देहिं भगवान ।। यह कलिकाल सलायतन . सन करि देख विचार । श्री रघुनायक नामुल: तजि, नहि कछ आन अधार११ ॥१२०/११ इति श्री रामचरित मानसे सकल कलि कलुष विध्वंसने विमल विज्ञान संपादिनी१३ नाम षष्ठस्सोपानः समाप्तः१४ ।। शुभम् अस्तु ॥ संवत १७०४ समए || माघ सुदि प्रतिपदं लिखितम् रघु तिवारी कास्यां (१) लोलार्क समीपे ।। श्री रामो जयति ।। श्री विश्वनाथाय नमः ॥ श्री विंदुमाधवे नमः ॥ २. अन्य राम कथाएँ । तुलसीदास की विभिन्न कविताओं के अतिरिक्त, बाद के लेखकों द्वारा उसी विषय पर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं। नीचे उन ग्रंथों की सूची दी जा रही है, जिनसे मैं परिचित हूँ-- १. मुनिय २. छपी पुस्तकों से यहां भिन्न अंकन-प्रणाली है। छपे ग्रन्थ में यहाँ है ३, संस्कृत अवतरणों में मैं श को और गौडियन अवतरणों में sh से प्रत्यक्ष करता हूँ। ४. विमल वैराग्य संपादनों ५. शुभम् अस्तु । सिद्धि र अस्तु । ६. विचित्र रूप ! छपे ग्रन्थों में यह तिथि नहीं दी जाती । ७. समर विजय रघुवीर के 5 चरित में सुनहि सुजान । ६, तिनहिं १०. नाथ नाम ११. नादि नन १२. ११८ १३, विमन शान. संपादनो १४. छपे । ग्रन्थों में इसके आगे की सुद छोड़ दिया जाता है।