पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७०

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( १५९ ) - यह रतनेश (सं० १९९) कवि के पुत्र थे और परना के राजा छत्रसाल .: (सं० १९७) के दरबार में थे । इन्होंने भाषा साहित्य का एक ग्रंथ ‘काव्य, विलास नाम का लिखा.। विक्रम साहि के संकेत पर इन्होंने भाषा भूषण और बलिभद्र (सं० १३५) के नखशिख का तिलक किया । इनके एक अन्य ग्रंथ का नाम "विज्ञार्थ कौमुदी है। मैं यहाँ उल्लिखित भाषा भूषण ग्रंथ को नहीं जानता। इस नाम का एक मात्र ग्रंथ, जिससे मेरा परिचय है, १८ वीं शती के अंत में जसवंत सिंह (सं० ३७७) द्वारा लिखा गया था, और जिसकी प्रायः टीकाएँ होती रही हैं। ऊपर निर्दिष्ट विक्रमसाहि कौन हैं, यह भी मुझे नहीं मालूम । यह चरखारी के प्रसिद्ध विक्रमसाहि (सं० ५१४) नहीं हो सकते, यदि उक्त विवरणं, जो वही है जो शिव सिंह सरोज में दिया गया है, ठीक हो। चरखारी के विक्रम १८०४ ई० में उपस्थित थे। यदि इन्हीं की ओर संकेत किया गया है, तो कवि ने छत्रसाल ( १६५० ई० में उपस्थित) का दरबार न किया होगा और ऊपर उल्लिखित भाषा भूषण तब जसवंत सिंह का होगा। विषय संदिग्ध है, अतः मैं फिलहाल प्रताप को अभी यहीं अस्थायी रूप से रख रहा हूँ। पुनश्च मुझे रतन या रतनेश नाम से ज्ञात बुंदेलखंड के दो राजाओं का पता है । एक की प्रशंसा भिखारीदास ( संख्या ३४४) ने प्रेम रत्नाकर' की भूमिका में, जो १६८५ ई० में लिखा गया, की है। दूसरा विक्रमसाहि ( सं० ५१४) के बादं १८२९ ई० में चरखारी का राजा हुआ। यह १८१६ ई० में उत्पन्न हुआ और १८६० ई० में दिवंगत हुआ। इनका उल्लेख ५१९-५२२ और ५२४ संख्याओं में हुआ है। विक्रमसाहि १७८५ ई० में उत्पन्न हुए और १८२८ ई० में सुरलोक सिधारे । यदि प्रतापसाहि इस रतनेश के पुत्र थे, तो वे विक्रमसाहि के पौत्र होंगे, और उनके समसामयिक नहीं हो सकते, क्योंकि इनके पिता विक्रमसाहि की मृत्यु के समय केवल १२ वर्ष के थे। परंतु फिर .... भी चरखारी से सुनने में आता है कि एक प्रतापसहि चरखारी में विक्रमसाहि के शासनकाल में रहते थे। ( किस सूत्र से, मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता)। भाषा भूषण सामान्यतया १८ वीं शती के अंत में लिखा हुआ माना जाता है। इसका मैंने बंबई-संस्करण देखा है, जिसमें इसके कर्ता जसर्वस सिंह को मारवाड़ का जसवंत सिंह (१६३८-१६८१ ई०)माना गया है। ढीटीज़ इन इन्दो सीथिक क्यायन्स', लेखक ए. स्टीन, 'द ओरिएंटल एंड वेवीलोनियन रेकार्ड' अगरत १८८७, पृष्ठ 8 से पुनर्मुद्रित. . .. .