पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२११

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उत्पन्न बडे-बड़े विद्वानों और वैज्ञानिकों में से एक थे, अपने बहनोई, अपनी सगी बहिन के पति, बूँदी के राजा [राब बुद्ध सिंह] से उसका राज्य झपट लेने से नहीं चूके। चारण लोग ऐसे काम कभी नहीं पसन्द करते थे, अतः वे चुप बने रहे। अठारवीं शती में चारणों द्वारा केवल दो इतिहास लिखे गए प्रतीत होते हैं और इनमें से एक में, विजय विलास में, जोधपुर के विजयसिंह और रामसिंह दोनों के भातृघाती युद्ध का वर्णन है।

साहित्य के अन्य विभागों में भी एक भी प्रथम कोटि का नाम नहीं दिखाई देता। सत्रहवीं शती के काव्य शास्त्र पर लिखने वाले कुछ बड़े कवियों ने अपने शिष्य छोड़ दिए थे, जो उनकी शैली पर सफलतापूर्वक चलते रहे; लेकिन यह शती प्रमुख रूप से टीकाकारों के रूप में ही टिमटिमाती रही है। पिछली शती के प्रायः प्रत्येक बड़े कवि ने इस शताब्दी में अच्छे टीकाकार पाए। शायद यह भी स्वाभाविक परिणाम ही था। केशवदास और उनके अनुयायियों ने भारतीय काव्यशास्त्र के सिद्धांतों का प्रतिपादन और सुदृढ़ स्थापना कर दी थी, दूसरी पीढ़ी ने इस पथ को अपनाया और पहली के लिखे सर्वमान्य श्रेष्ठ ग्रंथों पर उनका प्रयोग किया।

भाग १, धार्मिक कवि,
[यथासंभव कालक्रमानुसार]


३१९. प्रियादास—स्वामी प्रियादास, बृंदावन वासी, दोआब में । १७१२ ई० में उपस्थित।

इसी साल इन्होंने नाभादास (संख्या ५१) कृत भक्तमाल की अपनी सुप्रसिद्ध टीका लिखी। वार्ड ने (व्यू आफ़ द हिस्ट्री आफ़ द हिंदूज़ भाग २, पृष्ठ ४८१) बुंदेलखंडी भाषा में भागवत के कर्ता जिस प्रियादास का उल्लेख किया है, संभवतः यह वही हैं। देखिए, गार्सों द तासी भाग १, पृष्ठ ४०५।

टि०—प्रियादास वृंदावन वासी थे। पर वृंदावन दोआब में नहीं है।


३२०. गंगापति—१७१९ ई० में उपस्थित।

सं० १७७५ में लिखित विज्ञान विलास नामक ग्रंथ के रचयिता। यह हिंदुओं के विभिन्न दर्शन शास्त्रों से संबंध रखने वाला ग्रंथ है। यह वेदांत दर्शन और रहस्यवादी जीवन की अभिशंसा करता है।


३२१. शिव नारायन—गाजीपुर के निकट चंदावन के नेरीवान जाति के राजपूत। १७३५ ई० के आसपास उपस्थित।