पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२३

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( २०४) पुत्र थे। इन्होंने सं० १७९६ से १८०९ वि० तक राज्य किया। क्षत्रसाल की मृत्यु न १७१८ ई० में हुई, न संवत १७१८ में । इनका मृत्युकाल सं० १७८८ है। शिव सिंह ने करनभट्ट को 'सं० १७९४ में उ०' कहा है । ग्रियर्सन ने 'उ०' का गलत अर्थ 'उत्पन्न कर लिया है, और गल्ती सरोजकार के मत्थे ठोंक रहे हैं । सरोजकार का 'उ.' से अभिप्राय 'उपस्थित से है । -सर्वेक्षण ६९ ३४७. आनंदघन कधि-दिल्ली वाले । सं० १७२० ई० में उपस्थित । मृत्यु १७३९ ई० राग कल्पद्रुम, सुंदरी तिलक । शिवसिंह का कहना है कि इनकी कविता सूर्य के समान देदीप्यमान है और उन्होंने यद्यपि इनका कोई पूर्ण ग्रंथ नहीं देखा, पर ५०० के लगभग इनकी फुटकर कविताएँ देखी हैं। महादेव परसाद के साहित्य भूषण के अनुसार यह जाति के कायस्थ और मुहम्मदशाह (१७१९- १७४८ ई०) के मुंशी थे । मृत्यु के पहले यह वृंदावन चले गए थे, जहाँ यह नादिरशाह के मथुरा वाले घेरे में मारे गए। इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ सुजान सागर है। शिवसिंह द्वारा उल्लिखित, १६५४ ई० में उत्पन्न, कोकसार ( राग कल्पद्रुम) नामक ग्रन्थ के रचयिता 'आनन्द कवि' भी सम्भवतः यही है। कभी-कभी यह धन आनन्द छाप भी रखते थे। टि-शुक्ल जी के अनुसार घनानन्द का जन्म काल (सं० १७४६ ) है। यह नादिरशाहो में नहीं मारे गए, बल्कि अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण में सं० १८१७ में मारे गए । 'कोकसार के रचयिता आनन्द (सर्वक्षण ३९) इन घनानन्द या मानन्दधन से भिन्न हैं। - सर्वेक्षण २२ ३४८. जुगल किशोर भट्ट-कैथल, जिला करनाल, पंजाब के रहने वाले। १७४० ई० में उपस्थित । बादशाह सुहम्मदशाह (१७१९-१७४८ ई०) के दरबारियों में यह प्रमुख थे। संवत् १८०३ (१७४६ ई.) में इन्होंने अलंकार निधि नाम का अलंकारों की प्रथम श्रेणी का एक ग्रन्थ लिखा, जिसमें इन्होंने सोदाहरण ९६ अलकारों का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में यह लिखते हैं कि रुद्रमणि मिसर (सं० ३५२), सुखलाल (सं० ३५४), सन्तजीव (सं० ३५३) और गुमान जी मिसर (सं० ३४९ ) नामक चार प्रमुख कवि स्वयं इनके दरबार में थे । 'किशोर संग्रह' नामक संकलन ग्रंथ में इनकी बहुत सी फुटकर रचनाएँ हैं। शिवसिंह द्वारा बिना तिथि दिए हुए शृङ्गारी कवि के रूप में उल्लिखित 'जुगल किशोर कवि' भी सम्भवतः यही हैं।