पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२९५

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(२७६) राजा भरथरी गान । संगीत पचीसी ' . राम विनोद सादि जंतुन की पोथी राम चरण चिह्न सिसु बोध रसराज श्लोकावली रामायण (१ तुलसीदास कृत) रोगान्तक सार स्नेह सागर सामुद्रिक (अनुवाद) स्त्री शिक्षा विधायक संगीत दर्पण (अनुवाद) | सुगा बहत्तरी संगीत रत्नाकर (अनुवाद) उपदेश कथा टिक---कृष्णानंद व्यासदेव के ग्रंथ का नाम 'राग कल्पम है। इसके तीन ही नहीं, चार भाग छपे थे। इसका तीसरा भाग बँगला में छपा था : ... और इसमें अधिकांश बैंगला कविताएँ एवं शीत हैं। इनको रागसागर की उपाधि मिली थी। अतः इनके रथ को रागसागरोद्भव राग कल्पद्रुम भी कहते हैं। राग कल्पद्रुम शब्द कल्पद्रुम की स्पर्धा में नहीं लिखा गया। यह धारणा भ्रामक है। राजा की ओर सहज ही आकर्षण है। इसे दीन ब्राह्मण की सहज उपेक्षा ही कहा जायगा। राग सागर ने अपना संग्रह कार्य १५ वर्ष की ही . वय में १८१०ई० के आसपास प्रारम्भ किया और १८४२ ई. से उसका . खंडशः प्रकाशन प्रारम्भ किया, जो १८४९ ई० में पूर्ण हुआ। राजा राधाकांत ने १२ वर्ष बाद १८२२ ई० में अपना कार्य प्रारम्भ किया और १८५८ ई० में उसे पूरा किया। भतः राग सागर के संग्रह कार्य की प्रेरणा मौलिक है । हो सकता है, इसके सात भागों में विभाजन की प्रेरणा इन्हें शब्द कल्पद्रुम से . मिली रही हो। -शिबली नेशनल कालेज आजमगढ़, मेगजीन, १९५७ ई० ६३९. राम परसाद-मीरापुर के अगरवाला। जन्म (१ उपस्थिति) १८४४ई० । राग कल्पद्रुम । तुलसीराम (सं० ६४०) के पिता और शांतरस की कुछ कविताओं के रचयिता । ( देखिए सं० ४४४)। गासों द तासी (भाग १, पृष्ठ ४२०) इस नाम के एक व्यक्ति का उल्लेख करता है, जिसने अहमदाबाद में 'धर्म तत्त्व सार' नामक वैष्णव ग्रंथ लिखा था । टि-१८४४. ई० (सं० १९०१) राम प्रसाद जी का उपस्थिति काफ है, न कि जन्म काल, क्योंकि इसके १०.ही वर्ष बाद इनके पुत्र तुलसी राम ने सं० १९११ में भक्तमाल का उर्दू अनुवाद किया था। -सर्वेक्षण ७९९