अध्याय १
चारण काल ( ७००-१३०० ई०)
१. पुष्य कवि-उज्जैन के निवासी, ७१३ ई० में उपस्थित । यह प्राचीनतम भाषा कवि है, जिसका कोई उल्लेख मुझे देशी लेखकों की कृतियों में मिला है। शिवसिंह सरोज का कथन है कि यह ७१३ ई० में उपस्थित था और “भाषा (काव्य) की जड़' यही कवि हैं। इस विवरण से स्पष्ट नहीं होता कि इसका नाम पुष्य या पुष्प अर्पित एक था अथवा पुंड था । इसमें स्पष्ट लिखा गया है कि कर्नल टाड ने अपने राजस्थान में इस कवि का उल्लेख किया है। यदि भाषा से अभिप्राय प्राकृत के पश्चात्कालीन भाषा रूप से है, तब तो यह पूर्णरूपेण अस्वाभाविक वक्तव्य प्रतीत होता है। मुझे तो टाङ में सरोज के इस कथन का कोई प्रमाण नहीं मिलता। टाड (भाग १ पृष्ठ २२९, कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ २४६ ) में किसी पुष्य का उल्लेख अवश्य है, पर यह एक उत्कीर्ण लेख का रचयिता है । इस उत्कीर्ण लेख का टाड (भाग १ पृष्ठ ७९९ ) में अनुवाद भी दिया हुआ है । पुष्य के प्रति राजस्थान में यही एक मात्र उल्लेख है, जिसका संबंध सरोज के पुष्य से बाह्य तौर पर जोड़ा जा सकता है, पर यह उत्कीर्ण लेख किस भाषा में लिखा गया था, टाड़ में मुझे इसका भी कोई उल्लेख नहीं मिला ।
टि°-सरोज के प्रताप से इस कवि का उल्लेख हिंदी के प्रथम कवि के रूप में प्रायः सभी इतिहास ग्रंथों में होता आया है। पर इस कवि के संबंध में अभी तक कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं हो सकी है।
—'सर्वेक्षण ४९०
२. खुमान सिङ्घ-उपनाम खुमान राउत गुहलौत, चित्तौर (मेवाड़) के राजा, ८३० ई० में उपस्थित' ।
इनके नाम से खुमान रायसा बनाया गया। यह मेवाड़ की प्राचीनतम पद्यबद्ध वंशावली है और नवीं शती[२] में लिखा गया था। इसमें खुमान राउत एवं