पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/८७

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| ( ७८ ) हुई। भाषाकाव्य संग्रह के अनुसार सं० १५३७ चरणदास का मृत्यु काल है । इसे ग्रियर्सन में जन्मकाळ सान लिया गया है। चरणदास का बचपन का नाम रनजीत था । बाल्यावस्था मैं यह घूमते घामते दिल्ली पहुँचे, जहाँ गुरु सुखदेव से इनकी भेंट हुई और यह चरणदास हो गए। इन्होंने चरणदासी संप्रदाय चलाया। –सर्वेक्षण २३६ २४. अजबेस प्राचीन-जन्म १५१३ ई०।। | सुन्दर तिलक । यह बाँधो ( रीवाँ ) १ के राजा वीरभान सिंह ( १५४०- १५५४ ई० ) के दरबारी कवि थे और उस प्रान्त के पेशेवर भाट प्रतीत होते हैं। देखिए संख्या ५३० भी ।। टि० -- बांधव नरेश वीरभान सिंह के दरबार में अजबेस नामक कोई कबि नहीं हुआ। यह वस्तुतः वही अजवेस हैं, जो रीवाँ नरेश महाराज जयसिंह और उनके पुत्र महाराज विश्वनाथ सिंह जू देद ( शासनकाल सं० १८९२-१९११ वि० ) के आश्रित थे। इन्होंने ' सं० १८६८ में बिहारी सतसई को एक टीका लिखी थी और १८९२ या उसके कुछ पूर्व ‘बघेल वंश वर्णन' नामक ग्रंथ प्रस्तुत किया था। संभवतः ग्रियर्सन को भी इस संबंध में संदेह है, तभी ५३० संख्यक अजबेस को भी देखने का निर्देश किया गया है। -सर्वेक्षण २ २५. गदाधर मिसर-व्रजवासी । १५२३ ई० में उत्पन्न ।। राग कल्पद्रुम । । टि० - यह गदाधर मिश्र नहीं हैं, भई हैं। यह दाक्षिणात्य ब्राह्मण और चैतन्य महाप्रभु के गौड़ीय संप्रदाय के वैष्णव थे। यह उनके शिष्य रघुनाथ भट्ट के शिष्य थे । इनकी मृत्यु सं० १६७० वि० के आस-पास किसी समय हुई । ---सर्वेक्षण १५८ २६, माधवदास-ब्राह्मण । १५२३ ई० में उत्पन्न । | रागकल्पद्रुम् । यह भगवत रमित ( सं० १६ ) के पिता थे । यह संभवतः १. शिव सिंह सरोज में जोघ्पुर’ दिया है, जो स्पष्ट ही 'जोधपुर' को अशुद्ध छपा रूप है। किन्तु मुझे जोधपुर के किसी वीरभान नामक राजा का पता नहीं चला है। अजबेस ने अपनी एक कविता में लिखा है कि इस राजा ने अकवर की रक्षा की थी, जब वह बच्चा था । अतः' वीरमान वाँधो ( री ) का राजा था, जिसके यहाँ हुमायू ने शरण ली थी। इम्पीरियल गजेटियर आफ़ इण्डिया' में, जहाँ तिथियाँ अशुद्ध दी गई हैं, रीवाँ देखिए : और रिपोर्दै आफ्नो आर्किओलोजिकल सर्वे आफ़ इण्डिया अध्याय २७, पृष्ठ १०१ और अध्याय २१, पृष्ठ १०६ देखिए । संख्या ११३ एवं ५३० भी देखिए । । ।