पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१३८

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भमिका [ १११ । शताब्दी के अधविक्ष प्र3ि६ तोल कन्वे, जुरत, आरजू, दर्द, यक़ीन, , दिल्ली के अमजद, बनारस के अमीनुद्दोन, गाज़ीपुर के श्रशिक के उल्लेद्र तक सीमित रहूं गण ; और दक्विनी लेखकों में, हैदर शहउपनाम ‘र्तिया-गो'म ियों का गाने वाला नका, क्योंकि उन्होंने अपने रचे हुए मर्सि ये गाए । अन्य के अतिरिक्त, कविताओं का बहू क्रम उनकी देन है, जो वली कृत दीवान की कविताओं का विकास प्रस्तुत करता है । इन कविताओों के, जिन्हें मुनम्स’ कहते हैं, हर एक बैत, या दोह रे चरण, के साथ तीन और चरण जुड़े हुए हैं, और जो इस प्रकार एक भिन्न छन्द बन जाते हैं । अवजदी एक दूसरे उल्लेखनीय दक्खिनी लेखक हैं , वे एक ऐसे छोटेसे पद्य-श्रद्ध सर्वसंग्रह ' ( encyclopédie ) के रचयिता हैं। जिसमें कई अध्याय, हरएक भिन्न छन्द में, हैं, जिनका अध्याय के शीर्षक द्वारा परिचय देने का ध्यान लेखक ने रखा है औरंगााद के, सिराज की मृत्यु १७५४ के लगभग हुई : दक्खिन के अत्यन्त प्रसिद्ध कवियों में से सूरत के, उल्लत की मृ ११६५ (१७५१-५२) में हुई, उन्हें भी यहाँ थान मिलना चाहुिए । अंत में उन्नीसवीं शताब्दी के छौर सामयिक अत्यन्त प्रसिद्ध भारतीय लेखकों में से हिन्दी के हैं : बख्वर, जिन्होंने जैन सिद्धांतों की प में व्याख्या की हैं, जोबन-ले लुक दूई राम औौर रामसनेहियों के गुरु की धार्मिक परंपरा में उनके उत्तराधिकारी छत्रवास । उर्दू में, सभायी और करीम ने हमें १८५२ में मृश्यु को प्राप्त प्रचुर और सुन्दर कवि दिल्ली के भूमि, जिनके दीवान को उन्होंने ‘अद्वितीय कहा है ; १८४२ या ४३ में मृध्यु को प्रात, नसीर, , १८४७ में मृत्यु को त, आतश, जिनमें से हर एक का दीवान लोकप्रिय हो गया है ; ‘शाहनामा' के एक पच-छ संक्षिप्त अनुवाद के रचयिता, मूल चद , १.1इफा लिस्सब्यिान केंद्रों का उपहार ८