पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७१

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१६ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास | यथाशक्ति रामानन्द का शिष्य बनने की चेष्टा की, किन्तु गुरु ने मलेच्छा का देखना पसंद न किया । एक समय, रात्रि के बिल्कुल समाप्त होने से पूर्व कबीर उस पाठ की सीढ़ियों पर जाकर लेट गए जहाँरामानन्द स्नान करने वाले थे ! स्वामी, आएऔर संयोगवश उनका खड़ा कबीर के सिर में लग गया। कबीर काँपते हुए उठे ; किन्तु स्वामी ने उनसे कहा : ‘‘, राम शब्द बपो ’ कबीर ने वैसा ही किया, प्रणाम किया, और वापिस चले आए। सुबह होने पर वे उठेमाथे पर रामानन्दी तिलक लगाया, उसी संप्रदाय की गले में कंठी पहनी और अपने दरवाजे पर जाए । उनकी माता ने उनसे पूछा कि क्या तुम पागल हो गए हो ! उन्होंने उत्तर दिया : “मैं स्वामी रामानन्द का शिष्य हो गया हूँ 19" सब लोगों को आश्चर्य हुआ और स्वामी के दरवाजे पर शोर मचाते हुए गए । इस पर आश्चर्यचकित हो उन्होंने कबीर को बुला मेगा । एक पर्दे के पीछे बैठे हुए, उन्होंने उनसे पूछा कि क्या वे वास्तव में उनके शिष्य हैं । कबीर ने उत्तर दिया, महाराज रामनाओं के अतिरिक्त भी क्या और कोई मंत्र है रामानन्द ने कहा, यह सर्वोतम दीक्षा-शब्द है ।—कबीर ने फिर कहा, महाराज क्या यह मंत्र दीक्षां पाने वाले के कान में नहीं पढ़ा जाता १ फिर आपने तो मेरे सिर पर चरण रख कर यह मंत्र दिया ' अर्थात् एक जंगली का, एक व्यक्ति का जो हिन्दू नहीं है। वास्तव में अलो ने कुनीर को मुसलमान धर्म में ऊपर उठाया। २ शब्द जो गुरु के समान है यह एक आदरसूचक उपाधि है जो विद्वानों और साधुसंतों को दी जाती है। 3 चार : टाँगों का एक प्रकार का लकड़ी का भारी जूता, जो एक छोटी मैच से मिलताजुलता है। त्रालय यह जूता घर से बाहर पहिनते हैं, भारत के कुछ कैथोलिक मिशनरी इसका प्रयोग करते है। ४ संप्रदाय का दौडाशब्द