पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कबीर [ १७ इन शब्दों के सुनते ही रामानन्द ने पर्दा हटा दिया, और कबीर को हृदय से लग लिया। इसी बीच में ईश्वरप्रेम से श्रोतप्रोत हो कबीर कपड़े बुनते और उन्हें बेचने ले जाते, किन्तु इससे उनके धार्मिक जीवन में कोई विघन न पड़ता था । एक दिन जब वे कपड़े का एक टुकड़ा बाजार ले गएस्वयं विष्णु ( मगवत ) ने वैष्णव रूप में उनसे भिक्षा माँगी । कबीर उन्हें टुकड़े का आधा भाग देने लगे, किन्तु एक बने हुए भिखारी की भाँति उन्होंने उनसे कहा कि यात्रा मेरे किसी काम का नहीं, तो कबीर ने पूरा टुकड़ा दे दिया; औौर झिड़कियाँ सुनने के डर से वे अपने घर वापिस न आएकिन्तु बाज़ार में लेट रहे । उधर उनके घर वालों ने बिना कुछ खाए तीन दिन तक इन्तज़ार किया । इस बीच में, कबीर की सच्ची भक्ति जानकरविष्णु ने ( कवीर का ) रूप धारण किया, और उनके घर एक बैल पर अनाज लाद कर ले गए । यह सत्र देखकर कभीर की माता के चिल्ला कर कहा : ‘तो तू यह चुरा लाया है १ यदि हाकिम को मालूम हो गया तो वह तु जेल में बन्द कर देगा।’’ कबीर के घर सामान छोड़ कर विध्णु, उसी वैष्णव रूप में, बाज़ार लौट आए औौर कबीर को घर वापिस भेज दिया । उन्होंने अपने घर पर इतना सामान पाकर श्रपना रोज़गार छोड़ दिया और राम की भक्ति में पूर्णतः तल्लीन हो गए । इस बात पर ब्राह्मणों ने आकर कबीर को चारों तरफ से घेर लिया, और उनसे कहने लगे : “दुष्ठ जुलाई, के इतनी दौलत मिल गई, किन्तु तूने हमें नहीं बुलाया, केवल तू वैष्णवों को ही १ एक विशेष संप्रदाय का अनुयायी, जिसकी विष्णु में, जिनसे यह शब्द बना है, अत्यधिक भक्ति होती है। इसके संबंध में विल्सन ने हिन्दुओं के संप्रदायों पर अपने विद्वतापूर्ण विवरण’ ) में विस्तार से कहा , ‘शियाटिक रिसचेंज, ( Memor जि० १६ और १७ । ‘भक्तमाल एक वैष्णव की देन है, और जिसमें हिन्दू धर्म की इस शाव से संबंधित सब प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। ०-२