पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१९९

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४४ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास शताब्दी में, मूमीनाबाद (Miminabad ) नामक एक गाँव में हुआ । वे अपने पिता के स्थान पर कार्य करने लगे ।सुलतान मुहम्मद तुगलकशाह के, जिनकी प्रशंसा में खुसरो ने अनेक कसीदे लिखेवे अत्यन्त प्रिय पात्र थे । वे सात शाहंशाहों की सेवा में रहे और उनमें से कुछ के सहभोजी और मित्र हो गए थे । अपनी वृद्धावस्था में उनकी सादी से भेंट हुई ।' कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध फ़ारसी कवि ने हमारे चरित नायक से मिलने के लिए भारतयात्रा की थी । सरो ने ( उस भेंट के ) अंत में संसार से बिल्कुल विराग धारण कर लिया, और अपने को पूर्ण रूप से भक्त और धार्मिक दानशीलता में लगा दिया। उन्होंने अपनी वे रचनाएं नष्ट कर दीं जिनमें उन्होंने राजाओं तथा संसार के महान व्यक्तियों की प्रशस्तियों की भरसार कर दी थT, ताके केवल वे ( रचनाएँ ) बच रहें जिनका सम्बन्ध आत्मा से था ( और ) राजा तथा प्रजा जिसके समान रूप से वशवर्ती थे । वे वास्तव में एक सच्चे सूफ़ी हो गएऔर उच्च कोटि की आध्यात्मिकता प्राप्त कर ली । उनकी रहस्यवादी कविताएँ अब भी प्रायः मुसल मान भक्तों द्वारा गाई जाती हैं। वे निजामुद्दीन औलिया २ के, जो स्वयं प्रसिद्ध फरीद शाकरगंज ३ के शिष्य थे, आध्यात्मिक शिष्य हो गए थे । औलिया की मृत्यु से वे इतने दुःखी हुए कि वे ७१५ हिजरी ( १३१५-१३१६ ) में कम अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुए । वे अपने गुरूफरीद और अन्य विचारकों की वर्षों के पास दिल्ली के एक सुन्दर स्थान में, दफ़ना दिए गए । . ’ यह कवि फारसी लेखकों में अकेलाजिसने यूरोप में ख्याति प्राप्त की, १२९१ ईसवी सन् में मृत्यु को प्राप्त हुआ। २ मेरा ‘भारत में मुसलमान धर्म पर मेम्वार’ ( Memoire sur la religion musalmane dans * Inde ) देखिए१०४ तथा बाद के पृष्ठ > उसी ‘मेम्वार’ को देखिए, १०6 तथा बाद के पृष्ठ