हों'। प्रत्येक अंश का अर्थ उन्हें समझाना पड़ता है। साथ ही ऐसे लोग भी हैं जो तुलसी कृत‘रामायण’के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों में उसे पढ़ नहीं सकते,क्योंकि सुनते-सुनते वह उन्हें कण्ठस्थ हो जाती है।'
तुलसी कृत‘रामायण’ के जिन संस्करणों का मैंने उल्लेख
किया है,उनके अतिरिक्त भी अनेक हैं।१८३२ के में,जिसकी एक प्रति मेरे पास है,१८२८ के संस्करण की अपेक्षा,अक्षर बहुत छोटे,किन्तु साथ ही अधिक साफ हैं । शेष पाठ की दृष्टि से:कोई भेद नहीं है,वे एक ही हैं । एक संस्करण,बद्री लाल के निरीक्षण में,बनारस से १८५० में,और एक,चित्रों सहित,आगरे से १८५२ में निकला है। अंत में,सबसे अच्छा बनारस से १८५६ में प्रकाशित हुआ है,क्योंकि सम्पादक, पं० राम जसन ने,न केवल सब छंदों को दूर कर अलग -अलग रखने की छोर बरन् सब शब्दों और पाठ को,परिशिष्ट, देने,कठिन शब्दों का प्रचलित हिन्दी में अर्थ बताते हुए एक कोष देने,और काव्य का संक्षिप्त सार देने की ओर ध्यान दिया है ।
देशी लोगों द्वारा प्रकाशित लीथो के अन्य संस्करण हैं,जैसे आगरा, १५१ का,आदि। १.मोंटगोमरी मार्टिन (Montg. Martin),'ईस्टर्न इंडिया,जि१,और जि०२,पृ०१३२ २.३५-३५ पंक्तियों के ४८ अठपेजी पृष्ठ झींगन लाल की टीका सहित बनारस के एक और संस्करण का विज्ञापन हुआ है,किन्तु मैं कह नहीं सकता वह प्रकाशित हुआ है या नहीं।
३.मेरठ के 'अखबार ए आलम'के,२२ मार्च,१८६६ के अंक,मैं, लखनऊ से मुद्रित,उर्दु,छन्दों,कई सौ चित्रों साहित,एक‘रामायण’ की घोषणा निकली है,दिल्ली से १८६८ में,‘रामायण सटीक'-टीका सहित ‘रामायण’--शीर्षक के अंतर्गत एक संस्करण निकला है।