पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२६१

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१०६ 1 हिंदुई साहित्य का इतिहास स्थापना की, अर्थात् जो एक नवीन संप्रदाय अथवा कबीर की प्रणाली में एक सुधार के प्रवर्तक थे । उनके अनुयायी न तो मंदिर रखते हैं, न मूर्ति, न प्रार्थना का निश्चित रूप से वे मद्यपान नहीं करते और पशु-मांस नहीं खातेक्योंकि वे उन्हें भी उसी दिव्य शक्ति से अनुप्राणित जीब समझते हैं जिसे वे ‘सत्य साख कहते हैं। वे देवताओं के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते। वे बलि और होम नहीं करते, किन्तु ईश्वर को वे फलमिठाई दूध तथा अन्य प्राकृतिक पदार्थ जमीन पर रख कर चढ़ाते हैं। वें संस्कृत विज्ञान’ से घृणा करते हैं, , पुराण और कुरान को भी नहीं मानतेऔर उनका कहना है कि जो कुछ जानने की आव श्यकता है वह दरियादाल द्वारा रचित हिन्दी के अठारह ग्रन्थों में मिल जाता है । व्यूलैन ने ये प्रन्थ देखे थे, किन्तु वे उन्हें प्राप्त नहीं कर सके क्योंकि लोग उन्हें पवित्र समझते हैं। दया राम हिन्दी रचना ‘दया विलास’ द्या के सुख के रचयिता हैं। जिसकी एक हस्तलिखित प्रति कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी में है । यह रचना संभवतः वही है जिसकी नस्तालीक अक्षरों में एक प्रति, नं ० ५२, ‘भागवतशीर्षक के अंतर्गतकेम्ब्रिज यूनि वर्सिटी के पुस्तकालय में है । दया संभवत: वही लेखक जिनके हिन्दुस्तानी, गुजराती और मराठी में प्रसिद्ध भजन और गीत मिलते हैं जो अत्यन्त प्रसिद्ध गवैया अपने शिष्य, रामचन्द्र भाई, के पास छोड़े गए एक , १ मौजंगमरो मार्टिन‘ईस्टर्न इंडिया, जि० १, ३० ५०० २ भ० दया, उदारता, सद्भावना'