पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८९

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१३४] हिंदुई साहित्य का इतिहास बैठ कर वे अपना पद गाने लगे 1 गा लेने के बाद, उन्होंने कहा : ‘है स्वामी, यह दण्ड शायद ठीक ही है, किन्तु तो भी आाज से इसी स्थान पर बैठ कर मैं अपने पद गाऊँगा । तुम खूनो या न सुनो, अब मैं तुम्हारे मन्दिर में न जाऊँगा । रपद् हीन हो जाति मेरी यादव राइ : कलि में नामा इहां काहे को पठायो । ताल पखावज बजे पारि नावें हमरी भक्ति बठल काहे को रावै !॥ पंडव प्रभु यू बचम सुनी जै । नामदेव स्वामी दरशन दीजे ॥' जब वे यह पद गा चुकेतो मन्दिर के दरवाजे ने स्थान बदल दिया और वह जो थोड़ी देर पहले पूर्व की औौर था पश्चिम की ओर हो गया; और पंडरनाथ ने उन्हें हाथ पकड़ कर अपने पास बिठ लिया मन्दिर के कर्मचारियों को जब यह ज्ञात हुआ तो वे घबड़ाए; और नाम देव के पैरों पर गिर क्षमायाचना की। एक धनाड्य व्यापारी ने अपने तुलादान की हर एक चीज़ का बड़ा मारी दान क्रिया एक उसने नाम देव को बुलाकर प्रारम्भ । दिन कहा : ‘चाप की जो इच्छा हो स लीजिए। संत ने यह देख कर कि इस व्यक्ति को गर्व हो गया है उसका गवखण्डन करने की बात सोची एक तुलसरामलिखा औौर

उन्होंने -िपत्र लेकर उस पर नाम

उसे व्यापारी को देते हुए कहा : ‘इस पत्र को बराबर जो कुछ हो। मुझे दो ।' व्यापारी ने आश्चर्यचकित होकर कहा : ‘क्या, थाप परिहास करते हैं ? कोई चीज़ लीजिए ' नाम देव ने अनुरोध करते हुए कहा-'नहीं, मुझे इस पत्ती के बराबर ही दीजिए। तन उसने ' पत्ती तुला में रखी; किन्तु दूसरी ओर अपने घर, अपने परिवार और अपने पड़ौसियों का सत्र सामान रख देने पर भी, पत्ती वाला पलड़ा ऊपर ही न उठा । व्यापारी को बड़ा नाच हुआ, और उसके सत्र १ यह पद 'मक्कमाल सटीक', मुंश नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ, १८८३ ६०, प्रथम संस्करण , से लिया गया है।—अतु’ ध