पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४४१

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२८६ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास विद्या सागर' ( ईश्वर चंद्र) कैन्टेन डब्ल्यू० एन० लीस ( Lees ) द्वारा फिर से मुद्रित अठपेजीहिन्दी में बैताल पचीसी' के एक संस्करण के संपादक हैं। विनयविजयगणि चार भागों में जैन धर्म की प्रिय रचना‘श्रीपाल-चरित्र,२ अथवा मालवा के राजाश्रीपाल की कथाके रचयिता। यह रचना उस रचना से नितान्त भिन्न है जो परमाल क्षत है , यद्यपि उसका शीर्ष यही है, और जो एक जैन पुस्तक भी है । मैकेन्जी संग्रह में उसका उल्लेख पाया जाता है, जि० २, ४० ११३ से भारतीयविद्या विशारद श्री विल्सन द्वारा दिया उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। : श्रीपाल की दो पुत्रिय ईं थीं , उनमें से मयनसुन्दरी नामक एक से अप्रसन्न होने के कारण, उसने उसका विवाह एक दरिद्र कोढ़ी के साथ कर दिया किन्तु यह कोढ़ी न था : उसने राज कुमारी को भी अपने धर्म में दीक्षित कर लिया, और उसका कोढ़ अच्छा हो गया । श्रीपाल ने कंसंयी’ के रजा, धवलेश को पराजित किया और उसने उसकी पुत्री मदनमंजूषा से विवाह कर लिया । बाद को उसने पाँच और राजकुमारियों से भी विवाह किया जिनका पाणिग्रहण उसने विविध कौशलों से प्राप्त किया । फिर उसनेचंपा के राजाअजितसेन, को पराजित किया, १ भ० ‘शान के समुद्र’ २ श्रीपाल चरित्र