पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४६९

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३१४ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास ईसवी सन् ) में लिखित सुंदर सिंगारया ‘गार,' अर्थात् प्रेम का श्रृंगार, रचना की भूमिका में गुणगान किया है, के आश्रय में अपनी रचनाओं का निर्माण किया ऐसा प्रतीत होता है कि मति राम की रचनाओं की भाँति इस रचना में स्वभावअवस्था तथा अन्य परिस्थितियों के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से विभाजित और प्राचीन कवियों की भाँति गंभीर और विस्तृत सूक्ष्म रूप में त-संमत लक्षणों सहित नायक और नायिकाओं का वर्णन है। ये कविताएँ न तो मनोरंजक हैं और न विनोदपूर्णकिन्तु सरल हैं, और जातीय रुचि के अनुसार लिखी गई प्रतीत होती हैं : श्री विल्सन के सुन्दर संप्रह में इस रचना की एक हस्तलिखित प्रति थी। उसकी ‘पोथी सुन्दर सिंगार’ शीर्षक एक और पोथी कल कते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में भी है ; किन्तु इस पुस्तकालय की पुस्तकों के सूचीपत्र में रचयिता का केवल महा- कत्रि' उपनाम से उल्लेख है ।हीरा चंद ने उसे अपने ‘त्रजभाखा काव्य संग्रह’–हिन्दी कविता का संग्रह शीर्षक ग्रंथ के दूसरे भाग में बंबई से १८६४ में प्रकाशित किया है ?' मैं नहीं जानता कि फरजाद कुली ( Farida Culi ) के सूचपन में निर्दिष्ट ‘पोथी। सुन्दर विद्या, अर्थात् सुन्दरज्ञान की पुस्तक, शीर्षक रचना के रचयिता सुन्दरदास हैं। सम्राट शाहजहाँ की आज्ञा से संस्कृत से अनूदित सिंहासन बत्तीसी’," अर्थात् सिंहासन की बत्तीस कहानियाँ, रचना का ब्रज- भाषा रूपान्तर भी इन्हीं सुन्दर ने किया । मेरे विचार से यह वही १ सुंदर सिंगार, या संस्कृत हिज्जे के अनुसार 'गार' २ शियाटिक रिसरौन, जि० ७, १० २२०और जि० १०, ० ४२० ३ देखिए हीरा चंद पर लेख

  • ‘पोथो सुन्दर विद्या’ ( फ़ारसी लिपि से )

५ देखिए लल्लू पर लेख ३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।


३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।