पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७८

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सूरदास [ ३२३ की भाँति, पंक्तियां एक दूसरी के बाद बराबर लिखी गई हैं) गव में लिखी कहा गया है । इसी रचना का वॉर्ड' ने हिन्दी पुस्तकों के संबंध में उल्लेख किया है । वहफोलिओ आकार में, लखनऊ से, १८६४ में, काली चरन द्वारा प्रकाशित हुई है, और गिरिधर की टीका -सहित उसका पूर्वार्द्धसूर शतक पूरब अर्धसूर के सौ (रागों ) का पूर्वार्द्ध-शीर्षक के अंतर्गतबाबू हरि चन्द्र द्वारा बनारस के १८६३, ६ ठपेजी पृष्ठ। मैं नहीं जानता बुंदेलखंड की बोली में ‘रास लीला', जिसका उल्लेख वॉर्ड ने भी सुरदास कृत एक रचना के रूप में किया है, उसी संग्रह का दूसरा नाम है, अथवा एक अलग रचना है । मैं यह भी नहीं जानता कि कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी की पुस्तकसूची में, संगीत पर पबद्ध रचना के रूप में उल्लिखित, सूरदास कृतरिसाला-इ-रा’ नामक पुस्तक बही रचना है । वार्ड ने तो ‘सूरदास कवित्व' ( सूरदास की कत्रिता ) पुस्तक का और उल्लेख किया है जिसे उन्होंने जेपुर की बोली में लिखा बताया है ।' अंत में नल दमयन्ती’ या ‘भाखा नल दसन,४। या संक्षेप में किस्साइ नल वुमन, अर्थात् नल और दमन, संस्कृत में प्रत और दमयन्ती कहे जाने वालेभारत के प्रसिद्ध चरित्रोंकी कथा शीर्षक दस पंक्तियों के बंद में एक बड़ा महाकाव्य, यदि उसे इस नतम १ ‘हम्दुआओं का इतिहासआई , जि० २५ ४० ४८० २ ‘हन्दुओं का इतिहासआदर्द, पृ० ४८१ 3 बहों। वे इन शब्दों का शाब्दिक अर्थ चल दमनहैकथा में ( भरत की कथासंबंधी भाष) । ५ मेरे निजी संग्रह में, इस रचना की एक सुंदर प्रति है, रदास की रचनाओं की भौं.त फ़ारसी अक्षरों में । यह दिल्ली में तैयार हुई थी, १७५२-१७५३ में, हमदशाह के शासनान्तर्गत ।