पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७९

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३२४ ] हिंदुई संहित्य का इतिहास से पुकारा जा सकता है, सूर दास कृत बताया जाता है । उसकी हस्तलिखित प्रतियाँ अत्यन्त दुर्लभ हैं, क्योंकि ‘कवि बचन सुधा’ में उसकी किसी प्रति का पता बताने वाले को रुपए का सा पुर स्कार घोषित किया गया । है । अकबर के मंत्री, अबुलफजलके भाईफैजी ने इसी पाठ से तो अपनी फ़ारसी कथा का अनुवाद नहीं किया जो उसी विषय से संबंधित है ? क्योंकि ‘आई। अकबरीमें उसे हिन्दुई से अनूदित रचना कहा गया है ।’ ईस्ट इंडिया हाउस के पुस्तकालय में किस्साइ नल ओ दमन' शीर्षक नल और दमन की एक और कथा है, जिसे संस्कृत से अनूदित कहा गया है । वह तीन सौ पृष्ठों की चौपेजी जिल्द है ( ४३३, फाँद लीडेन –Fonds Leydch ) । सूरदास की कविताओं का चुनाथदास द्वारा संकलित सूर रत्न' या 'सूर सागर रत्न’-सूर (दाल) के सागर के रत्न शीर्षक एक संग्रह बनारस से १८६४ में प्रकाशित हुआ है, २७४ अठपेजी पृष्ठ । आगरे से, छोटे १२ पेजी आकार का, एक ‘बारामासा’- बारह महीने, तीनतीन पंक्तियों के छ: छंदों की कविता, मुद्रित हुई है, जो सूरदास द्वारा लिखित है या कम-सेकम इस प्रसिद्ध कवि कृत बताई जाती है, जिसका चित्र इस प्रस्तुत पुस्तिका के. अंतिम पृष्ठ पर सुशोभित है। बाबू हरि चन्द्र ने कवि बचन सुधा’ के अंक ६ में सूर दास की जीवनी पद्य और राय में प्रकाशित की है । सेन या सेना' अपने व्यवसाय की दृष्टि से नाई, तथा वैष्णव संतआदि प्रथ ’ के चौथे भाग में सम्मिलित हिन्दी कविताओं के रचयिता हैं । - .५ बि० १, ६० १८४ २ भा० शिकारी बा ?