पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४६

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परिशिष्ट ६ [ ३६१ भयो कहा जानंत न हम अब कहीं बात सांच को 1 प्रभु ही बनाई मन भाई मेरे वो गाथा लाये वह बालकी कोपालकी में नाच की। धीर समीरे यमुना तीरे वसति बने बनमाली १ फेरो ग्रुप डोंड़ी यडू औोड़ी बात जानी महा कहा राजा रंक पड़े नीकी दौर जानि कै । अधर मधुर औरु मधुर सुरनि ही सों गाये जब लाल प्यारी ढिग ही है मानि के । सुनो यह रीति एक मुगल ने धारि लई पढ़े च दे बोरे आगे श्याम रूप ठानि है। पोथी को प्रताप स्वर्ग गावत हैं देव व यू आप ही जो री लिख्यौ निज कर यानि 11 पोथी को नौ बात सच कही मैं सुहात हिये सुनो और बात जामें आति आधि- काइये । गांव में मुहर मग चलत में ठग मिले कौ कहां जात जहां तुम चलि जाइये । जानि लई अप खोलि द्रव्य पकराइ दियो लियो चाहो जोई सोई सोई मोको लाइये । दुष्टनि सम िकही कीनी इन विद्या अहो श्रावै जो नगर इन्हें बेरी पकराइये ॥ एक कहै डारो मारि भलो है विचार यही एक कहै मारो मति धन हाथ मायो है । जो पैसे पिछानि कहूँ कीजिये निदान का हाथ पांव काटि बड़े गढ़ घरायो है । आयो तहां राजा एक देखि के विवेक भयो छयो उजियारो औ प्रसन्न दरशायो है । बाहिरि निकसि मानो चन्द्रमा प्रकाश राशि पूछो इतिहास कझौ ऐसो तन पायो है । बढ़ोई प्रभाव मानि स को बलातन महो मेरे कोक भूरि भाग दरशन कीजिये । पालकी त्रिठाव लिये किये सब चूंकि नीके जीके भाये भये कटु आज्ञा मोहैिं दीजिये क हरि साधु सेवा नाना पकवान मेवा श्रादें जोई सन्त तिन्हें देखि देखि भीजिये । आये वेई टग माला १ पाठ में यह पद केवल संस्कृत में है। जय देव के काव्य में यह पाया जाता है, और वहीं से लिया गया है, v( ५ , ११, ia ८ । २ तासो ने इस मुगल का नाम ‘मोर मधो’ लिखा है और उसे लाहौर का बताया है ।-अनु० वे इस समय तक इस शब्द का अर्थ है ‘चोर’ और धोखा देने वाला, बहकाने वाला' 1 यहाँ यह पहले अर्थ में प्रयुक्त हुआ हैऔर उसमें भी खींच तान के साथ।