पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/६

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हिन्दी साहित्य के इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी का जहाँ एक ओर आधुनिकता के बीजारोपण की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है, वहीं दूसरी ओर साहित्य के इतिहास-निर्माण की दृष्टि से भी यह शताब्दी उल्लेखनीय है। तासी, सेंगर और ग्रियर्सन की कृतियों (क्रमशः १८३९, १८७७, १८८९ ई॰) का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में ही हुआ था। उनमें से फ़्रांसीसी लेखक गार्सां द तासी कृत फ़्रेंच भाषा में लिखित 'इस्तवार द ल लितेरत्यूर ऐंदूई ऐ ऐंदूस्तानी' (हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास) का अपना विशेष स्थान है, क्योंकि हिन्दी साहित्य की दीर्घकालीन गाथा को सूत्रबद्ध रूप में स्पष्ट करने का यह सर्वप्रथम प्रयास था[१] और जिस वृत्त-संग्रह शैली के अंतर्गत सेंगर और ग्रियर्सन ने अपने-ग्रन्थों का निर्माण किया उसका जन्म तासी के ग्रन्थ से ही होता है। वास्तव में जितनी विस्तृत सूचनाएँ तासी के ग्रन्थ में उपलब्ध होती हैं वे अन्य दो ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होतीं, इस दृष्टि से भी इस आदि इतिहास ग्रन्थ का महत्व है। यद्यपि तासी ने कवियों और उनकी रचनाओं को अविच्छिन्न जीवन की विविध परिस्थितियों के बीच


  1. सेंगर ने 'सरोज' की भूमिका में लिखा है: 'मुझको इस बात के प्रकट करने में कुछ संदेह नहीं कि ऐसा संग्रह कोई आज तक नहीं रचा गया।' तासी ने कवियों की कविताओं का संग्रह तो नहीं दिया, किन्तु 'कवियों के जीवन चरित्र सन् संवत्, जाति, निवास स्थान आदि' उनकी रचना से छः वर्ष पूर्व द्वितीय बार तासी द्वारा प्रस्तुत किए जा चुके थे।