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हिंदुई साहित्य का इतिहास

जिनके शब्द ज्यों-के-त्यों मैंने इस लेख के लिए ग्रहण किए हैं, के साथ मैं कह सकता हूँ: 'हिन्दी की बोलियों का एक साहित्य है जो उनकी विशेषता है, और जो अत्यधिक रोचक है'; और यह रोचकता केवल काव्यगत ही नहीं, ऐतिहासिक और दार्शनिक भी है हम पहले हिन्दुस्तानी के ऐतिहासिक महत्व की परीक्षा करेंगे। हिन्दुई में, जो हिन्दुस्तान की रोमांस की भाषा भी कही जा सकती है, जिसे मैं भारत का मध्थयुग कह सकता हूँ उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण पद्यात्मक विवरण हैं। उनके महत्त्व का अनुमान बारहवीं शताब्दी में लिखित चन्द के काव्य, जिसे कर्नल टॉड ने 'ऐनल्स आँव राजस्थान'[१]की सामग्री ली, और सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में लिखित लाल कवि कृत बुन्देलों का इतिहास रचना से, जिससे मेजर पाॅग्सन (Pogson) ने हमें परिचित कराया था, लगाया जा सकता है। यदि यूरोपीय अब तक ऐसी बहुत कम रचनाओं से परिचित रहे हैं, तो इसका यह तात्पर्य नहीं कि वे और हैं ही नहीं। प्रसिद्ध अँगरेज़ विद्वान् जिसे मैंने अभी उद्धृत किया है हमें विश्वास दिलाता है कि इस प्रकार की अनेक रचनाएँ राजपूताने[२]में भरी पड़ी हैं। केवल एक उत्साही यात्री उनको प्रतियाँ प्राप्त कर सकता है।

हिन्दुई और हिन्दुस्तानी में जीवनी सम्बन्धी कुछ रोचक रचनाएँ भी मिलती हैं। १६ वीं शताब्दी के अंत में लिखित, अत्यधिक प्रसिद्ध हिन्दु सन्तों की एक प्रकार की जीवनी 'भक्तमाल' प्रधान है। कम प्राचीन जीवनियाँ अत्यधिक हैं, जैसा कि आगे देखा जायगा।

जहाँ तक दार्शनिक महत्त्व से सम्बन्ध है, यह उसकी विशेषता है और यह विशेषता हिन्दुस्तानी को एक बहुत बड़ी हद तक उन्नत आत्माओं द्वारा दिया गया अपनापन प्रदान करती है। वह भारतवर्ष के धार्मिक सुधारों

  1. इस लेखक तथा उसका प्रसिद्ध कक्तिा के संबंध में मैंने 'रूदोमाँ द लॉग ऐंदुई' की भूमिका और अपने १८६८ के भाषण में जो कुछ कहा उसे देखिए, पृ० ४९ और ५०
  2. 'मैकेन्ज कैटैलौग', पहली जिल्द, पृ० ५२ (lij)