पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१६

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अनुवादक का निवेदन 1 आठ नौ वर्ष पहले की बात है, एक दिन संध्या समय काशी नागरीप्रचारिणी सभा में मान्यवर श्रीयुक्त (अब राय साहब) बा० श्यामसुंदरदासजी बो. ए. के हाथ में मैंने अँगरेजी के कुछ प्रूफ देखे थे। पूछने पर मालूम हुआ था कि श्रीयुक्त काशी- प्रसादजी जायसवाल ने एक ग्रंथ लिखा है, जो छप रहा है उसी का यह प्रफ है; और जायसवालजी इसका हिदो अनु- बाद कराने का विचार कर रहे हैं। मैंने वे प्रूफ कुछ उलट- पुलटकर देखे थे। उसी समय मेरे मन मे यह कामना उत्पन्न हुई थी कि यदि मुझे इसका हिंदी अनुवाद करने का अवसर मिलता, तो बहुत अच्छा होता। परंतु साथ ही उस समय मुझे यह भी ध्यान आया था कि यह विषय बहुत गूढ़ है और इसका हिंदी अनुवाद करना मेरी अल्प योग्यता तथा सामर्थ्य के बाहर है। मेरी वह इच्छा और वह विचार मन ही मन दबा रह गया। फिर उस बात की मेरे सामने कभी कोई चर्चा नहा हुई। मैं भी वह बात कुछ दिनों मे बिलकुल भूल गया। प्रायः तीन वर्ष पूर्व मेरे परम प्रिय मित्र स्वर्गीय श्रीयुक्त पं० राधाकृष्णजी झा एम० ए० ने प्रस्तुत पुस्तक की छपी हुई और तैयार प्रति मेरे पास भेजी और मुझसे कहा कि आप इसका अनुवाद करके भेज दें। मैंने बहुत डरते-डरते