पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१७५

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1 (१४४) लाया गया है कि एक कुलपुत्त क्या क्या काम कर सकता है कामों में से एक काम उसका निर्वाचित राजा होना तो है ही; इसके उपरांत हमें रट्टिक और पेत्तनिक के दो कार्य और मिलते हैं। अशोक के शिलालेखों से जान पड़ता है कि भोज और रटिक या राष्ट्रिक दोनों एक या समान ही हैं * | अंगुत्तर निकाय की दीका मे बतलाया गया है कि पेत्तनिक का अभिप्राय पैतृक या वंशानुक्रमिक नेतृत्व (सापतेय्य) है, जो पूर्वजों के समय से चला आता है ।। इन पेत्तनिकों के विपरीत राष्ट्रिक और भोजक या भोज होते थे; और इसका अर्थ यही जान पड़ता है कि इन लोगों का नेतृत्व वंशानुक्रमिक या पितरादत्त नहीं होता था। सापतेय्य का अर्थ है-मिलकर नेतृत्व करना अथवा संयुक्त नेतृत्व; और इससे यह जान पड़ता है कि इन दोनों में से प्रत्येक दशा में एक से अधिक नेता या शासक हुआ करते थे। महाभारत में जहाँ अनेक प्रकार के शासकों की सूची दी गई है, वहॉ भोज भी उनमें से एक प्रकार बतलाया गया है, शांतिपर्व (अध्याय ६७. श्लोक ५४.१) खारवेल के

  • अशोक के प्रधान शिलालेख ५ और १३,-धारानं रिसटिक-

पेतेनिकानं ये वापि अंजे अपराता (गिरनार ५); भोजपितिनिकेपु, (शहवाज़गढ़ी, १३) +पितरादत्त सापतेय्यं । अंगुत्तर नि० ३. पृ० ४५६. श्रागे चलकर टीका में पृ० ३०० में फिर आया है-भुत्तानुभुत्त भुजति ।

  • राजा भोजो विराट सम्राट् ।