पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९

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[ ४ ] अल्प योग्यता के अनुसार ही इसे जैसे तैसे प्रस्तुत करना पड़ा। इसमे मुझे कहाँ तक सफलता हुई है, इसका निर्णय विज्ञ पाठकों तथा समालोचकों के हाथ है। जैसा कि स्वयं जायसवाल जी ने कहा है, यह विषय बहुत ही कठिन और गंभीर है और इसके विवेचन में किसी रूप में सम्मिलित होने के लिये भी बहुत अधिक योग्यता तथा पांडित्य की आवश्यकता है। मुझमें दोनों बातों का अभाव है। इसलिये मेरा निवेदन है कि यदि किसी महानुभाव को इसमें कहीं कोई त्रुटि दिखाई है, तो वे कृपाकर मुझे उसकी सूचना देने का कष्ट करे। निवेदक रामचंद्र वर्मा। कार्तिकी पूर्णिमा, सं० १६८४.