पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२१४

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(१८३ ) "इस कानून संबंधी प्रश्न पर विचार करने के लिये संघ के सब सदस्य एकत्र हुए। पर जिस समय वे लोग उस प्रश्न की मीमांसा कर रहे थे, उस समय बहुत से अनर्गल भाषण हुए और किसी भाषण का कुछ स्पष्ट अभिप्राय भी नहीं समझ में आया। तब पूज्य रेवत ने संघ के सामने एक प्रतिज्ञा उपस्थित की। "यदि संघको यह बात अभीष्ट हो तो संघ इस कानूनी प्रश्न का निर्णय (ज्यूरी से) पूछकर (या उसके परामर्शानुसार) करे । "और तब उन्होंने चार भिक्खु पूर्व के और चार भिक्खु पश्चिम के चुने....... 'आदरणीय संघ श्रवण करे। जब हम लोग इस विषय की मीमांसा कर रहे थे, उस समय हम लोगों के समक्ष अनेक अनर्गल भाषण हुए। यदि संघ को अभीष्ट हो तो इस प्रश्न की मीमांसा के लिये यह संघ चार भिक्खु पूर्व के और चार भिक्खु पश्चिम के नियुक्त करे। पूज्य उपस्थित लोगों मे से......जिसे स्वीकृत न हो वह बोले । प्रतिनिधियों की यह नियुक्ति की जाती है। संघ इससे सहमत है; इसी लिये वह मौन है। यही मैं समझता हूँ" ६१११. इस प्रणाली के द्वारा जो निर्णय होता था, उसे सम्मुख विनय अथवा सामने होनेवाली कार्रवाई कहते थे। इस प्रकार जो प्रतिनिधि चुने जाते थे, वे नियमानुसार सब लोगों के प्रतिनिधि समझे जाते थे; और इसी लिये यह भी माना जाता था कि मानों सभी दलो के लोग तत्संबंधी वाद-विवाद में सम्मिलित हैं। चुल्लवग्ग १२.२. ७-८.