पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२१३

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} (१८२) लगे और किसी कथन का अभिप्राय स्पष्ट नहीं होता था। यदि पूज्य संघ को समय मिले, तो वह अमुक अमुक भिक्खुओं की एक कमेटी या उपसमिति नियत कर दे। यही अत्ति है आदि। "हे भिक्खुओ, यदि वे मिक्खु लोग अपनी कमेटी या उप- समिति द्वारा उस विषय का निर्णय करने में समर्थ न हों, तो हे भिक्खुओ, उन भिक्खुओं को उचित है कि वे उस विषय को यह कहकर संघ को सौंप दें कि हे सजना, हम लोग अपनी उप- समिति में इस विषय का निर्णय करने में असमर्थ हैं । इसका निर्णय संघ कर ले। "हे भिक्खुनो, मैं तुम्हें इस बात का भी अधिकार देता हूँ कि तुम लोग ऐसे विषय का निर्णय बहुमत अथवा बहुतर सम्मति से कर लो।" जब कोई विषय किसी अधिक बड़ी संस्था या समूह को सौपा जाता था, तब भी इसी सिद्धांत के अनुसार कार्य होता था। "परंतु हे महाशयो, यदि आप लोग ऐसा न कर सकें, तो फिर इस विषय का निर्णय करने का अधिकार हम लोगों के ही हाथों में रहेगा। एक उदाहरण और लीजिए। + चुलवग्ग १.१. २०. चुल्लवग्ग ४.५.२४. +चुलवग्ग ४.४.१८.