पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२१६

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(१८५) जिस प्रश्न का एक बार निराकरण हो जाता था, उसे फिर से उठाना भी अपराध समझा जाता था। "हे भिक्खुओ, जब कि कानून संबंधी किसी प्रश्न का इस प्रकार निराकरण हो चुका हो, तब यदि कोई पक्ष उस प्रश्न को फिर से उठाना चाहे, तो प्रश्न को इस प्रकार उठाना 'पचित्तिय' है।" यदि किसी ऐसे समूह मे, जिसका संघटन ठीक ढंग से नहीं हुआ होता था, कोई काम हो जाता था, तो उसके उपरांत एकत्र होनेवाले अधिक पूर्ण समूह को यह हरजाना या दंड अधिकार नहीं होता था कि वह उस पहले समूह को किसी प्रकार का दंड दे सके अथवा उससे हरजाना ले सके। जान पड़ता है कि कुछ लोगों की सम्मति इसके विरुद्ध भी थो। परंतु बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने इस प्रकार के हरजाने या दंड (अनुमतिकप्पो ) को पूर्ण रूप से अस्वीकृत और त्यक्त ही कर दिया था। ६ ११४. इन समूहों वा अधिवेशनों में लेखक भी हुआ करते थे जो कभी अपना स्थान नहीं छोड़ते थे और सब प्रकार की प्रतिज्ञाएँ और निर्णय आदि लिखा अधिवेशनों के लेखक करते थे। एक बौद्ध सुचत, महागोविद, में, जिसका उल्लेख अभी हम आगे चलकर करेंगे, सुधम्म सभा में होनेवाली देवताओं की एक सभा का वर्णन है। देवताओं (सदस्यों) की पंक्तियों के ठीक बाहर चारों कोनों पर और उप- देवताओं (दर्शकों ) के सामने चार कार्य-विवरण लिखनेवाले,