पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/२१७

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जिनमें से प्रत्यक महारान उपाविधारी था, अपने निश्चित स्थान पर बैठे हुए थे। चं चारों महारान उस विषय के सत्रमाषणों नया प्रतिमाओं आदि का लिखनेवाले थे 'जिसकं लिय तावतिंश देवता एकत्र होकर सुधम्म सभा में बैठ और आपस में परामर्श करके निर्णय करते थे। " चारों दिलनवान्तं महारान तब तक वरावर अपने स्थान पर बैठे रहं और वहाँ से नहीं उठे ।” दीर्य निकाय के विद्वान् अनुवादक ने इस संबंध में यह बहुत ठीक समझा था कि ये चारों महाराज सब प्रकार के भाषणों को लिख लेनेवालं समझ जाते थे। वे अधिवेशनों के कार्यविवरण दिखा करते थे। साधारणतः लोग अपनी संस्थानों आदि का आरोप देवताओं में किया करते हैं। अत: इनस सहज में यह परिणाम निकाला जा सकता है कि महात्मा बुद्ध के समय में भारतवासी अपनी पालिमेंटो या

  • नागोविन्द सुन्त; दीव निकाय १६,8११. पाली टेक्स्ट

सोमयटीवाला संस्करण, बंड २.० २००-२५. येन अन्येन देवा नवानिशा सुधान्माया सभयन् सन्निसिना होन्ति सन्निपतिता त अत्यम् चिन्तयित्रा अत्यम् मन्तबिचा दुत्त बचना पितं चत्तारो से महाराना नम्मिन अज्य हान्नि, पञ्छनुमिट्टा बचना पितं चत्तारो महाराजा तस्मिन् अन्य हान्ति समु श्रासननु थिता अविष्यकन्ता । होस देबिड्स कृन Dialogues of the Budha,माग २. (Sacred Books of the Budhists TOL III) 9. २३-१ नोटा