पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३५३

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( ३२२) केवल भेद नीति के अवलम्बन से ही संघों का नाश हो सकता है। हे केशव, तुम संघ के मुख्य या नेता हो । संघ ने तुम्हें इस समय प्रधान के रूप में प्राप्त किया है, अतः तुम ऐसा काम करो जिसमें यह संघ नष्ट न हो। ( २५ ) बुद्धिमत्ता, सहनशीलता, इंद्रियनिग्रह और उदारता आदि ही वे गुण हैं जो किसी बुद्धिमान मनुष्य में किसी संघ का सफल- तापूर्ण नेतृत्व ग्रहण करने के लिये आवश्यक होते हैं। (२६) हे कृष्ण, अपने पक्ष की उन्नति करने से सदाधन, यश और आयु की वृद्धि होती है। तुम ऐसा काम करो जिससे तुम्हारे संबंधियों या ज्ञातियों का विनाश न हो। (२७) हे प्रभु, भविष्य संबंधी नीति, वर्तमान संबंधी नीति, शत्रुता की नीति, आक्रमण करने की कला और दूसरे राज्यों के साथ व्यवहार करने की नीति में से एक भी बात ऐसी नहीं है जो तुम न जानते हो। (२८) हे महाबाहो, समस्त अंधक-वृष्णि, यादव, कुरु और भोज, उनके सब लोग और लोकेश्वर अपनी उन्नति तथा संपन्नता के लिये तुम्ही पर निर्भर करते हैं। (२६)

  • शासक के अर्थ में 'ईश्वर' एक पारिभाषिक शब्द है। देखो

पाणिनि ६. १. २. पर महाभाष्य; कीलहान, ३ पृ० ७. 'ईश्वर श्राज्ञा- पयति । ग्रामाद्यामान्मनुष्या पानीयंतां प्रागांगं ग्रामेभ्यो ब्राह्मण आनी- यंतामिति । मिलाओ उक्त ग्रंथ २. ३६१. साथ ही देखो गौतम धर्मसूत्र ६. ६३ और जातक १.५१० 'इस्सरिय' 'एकराजता' ।