पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/८

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भूमिका यह हिंदू राज्यतंत्र-जो दो खंडों में विभक्त है और जिसके पहले खंड में वैदिक समितियों तथा गणों का और दूसरे खंड मे एकराज तथा साम्राज्य शासन-प्रणा- विषय और कठिनता लियों का वर्णन है-हिंदुओं के वैध- शासन-संबंधी जीवन का खाका है। यह विषय बहुत बड़ा है, परंतु इसका विवेचन नम्र है। इस विषय के प्राचीन ग्रंथ बहुत दिनों से लुप्त हैं; और उनमें जिस मार्ग का प्रदर्शन किया गया था, वह मार्ग बहुत दिनों से लोग भूल गए हैं। वह मार्ग फिर से ढूँढ़कर निकालना पड़ा था। सन् १९११-१३ में दंडनीति के क्षेत्र में प्राचीनों का राजमार्ग ढूँढ़ने के लिये एक संभावित रेखा खींचो गई थी। इन पृष्ठों में वही रेखा अधिक प्रशस्त और गंभोर की गई है। और अब पूर्व-पुरुषों का पथ दृष्टिगोचर हो गया है। लेखक ने यह जानने के लिये विशेष रूप से अध्ययन किया था कि यदि प्राचीन भारतवासियों ने वैध-शासन-संबंधी कोई उन्नति की थी, तो वह कैसी थी। सन् पार भिक कार्य १९११ और १९१२ में इस अध्ययन के कुछ परिणाम Calcutta Weekly Notes नामक कानूनी साम- यिक पत्र तथा कलकत्ते की मासिक 'माडर्न रिव्यू' में प्रकाशित