पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९

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( २ ) किया गया था। सन् १९१२ के हिंदी साहित्य-सम्मेलन में इसी से संबद्ध एक निबंध पढ़ा गया था और सन् १८१३ मे 'माडर्न रिव्यू' मे An Introduction to Hindu Polity नाम से उसका अनुवाद प्रकाशित किया गया था। इसकी प्रस्तावना के प्रकाशित होने से पहले किसी आधु- निक भाषा में इस विषय पर कोई ग्रंथ नहीं था। प्रस्तावना प्रकाशित करने का उद्देश्य पूरा हो गया । अब इस विषय को विश्वविद्यालयों के शिक्षा-क्रम से स्थान मिल गया है। और लेखक समाधानपूर्वक यह देखता है कि प्रायः प्रति वर्ष लोग, चाहे उसकी कृति का ऋण स्वीकृत करके और चाहे बिना किए, उसके निकाले हुए परिणाम उद्धृत करते हैं और बार बार उनका उल्लेख करते हैं। सब लोगों में इस विषय की चर्चा होने लगी है, इसमे प्रतिपादित सत्य मान्य स्वीकृत और गृहीत हो चुका है और अब यह विषय केवल उसी का नहीं रह गया; और ऐसा होना ठीक ही है।

प्रस्तावना से अभिप्राय पहले प्रकरण से है।

-अनुवादक। परंतु श्रीयुक्त बी० के० सरकार का मत कुछ और ही है। वे कहते हैं-"परंतु जायसवाल ने अपने लेखों मे जितने उद्धरण दिए हैं, वे सभी उद्धरण बाद के लेखकों ने अपना लिए है। (Pohtical Institution, etc. लेजिग् १९२२. पृ. १६) क्या वे लेखक इसके उत्तर में नहीं कह सकते-'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतलास्" ।