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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/११

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२ लोभ बुरी बला है लोभः पापस्य कारण . . सब अनर्थो का मूल लोभ है O . . साथियो ! एक दिन मै दक्षिण के वनों में भ्रमण कर रह था । वहाँ मैने एक तालाब के किनारे बूढ़े व्याघ्र को बैठे देखा कहने को तो वह व्याघ्र था, पर उसने एक हाथ में कुशाएँ। रखी थीं; दूसरे हाथ में सोने का कंगन । उसकी तापसी मुद्र देखकर मुझे हंसी आ गई। पर दूसरे ही क्षण मैं गम्भीर गया । मै सोचने लगा-यह व्याघ्र आज अवश्य कोई-न-को नया गुल खिलायेगा। सरोवर के पास ही एक पगडंडी थी। आने-जाने वालों : वहाँ तांता लगा था । व्याघ्र पथिकों को सम्बोधित करके व रहा था : पथिको! मैं आज कुछ दान करना चाहता हूँ। मे पास सोने का कंगन है । जो चाहे इसे ले सकता है। लोग उसकी ओर देखते और उसकी लम्पटता पर हँसव आगे का रास्ता नापते । इतने में एक लोभी पथिक भी उ ( १४ ॥