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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/११०

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विग्रह भगवती ने प्रसन्न होकर सव को जीवित कर दिया। प्रातःकाल रनिवास से निकलते हुए राजा ने वीरवर से पूछा: वीरवर, रात्रि मे कोलाहल क्यों हो रहा था ? वीरवर :महाराज, एक स्त्री रो रही थी । मुझे देखते ही वह न जाने कहाँ चली गई। राजा मुस्कराया और सोचने लगा- कितना महान् व्यक्तित्व है इस राजकुमार का? यह सत्य है कि यह पराया है पर फिर भी अपने बन्धुओ से सो गुना अच्छा है। राजा ने राजसभा मे वीरवर की सारी-की-सारी कहानी कह सुनाई। फिर वीरवर को बुलाकर कर्नाटक का राज्य उसे दे दिया। x x x x हिरण्यगर्भ आगे वोला · इसीलिये मै कहता हूँ कि हो सकता है कि यह कौआ भी हमारे कल्याण के लिये ही आया हो। मन्त्री : महाराज का विचार तो सत्य है पर नीति कहती है- यदि किसी को पुण्यो के प्रभाव से कभी कोई सुख प्राप्त हुआ तो वैसा ही मुझे भी प्राप्त हो जाए। इस भाति की कल्पना भी नहीं करनी चाहिये । धन की इच्छा से नाई ने जब ऐसा ही किया तो उसे मृत्यु प्राप्त हुई। हिरण्यगर्भ : मे यह कथा सुनना चाहता हूँ । मन्त्री : सुनो महाराज !