सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० हितोपदेश न युद्ध में ही लड़ते-लड़ते प्राण त्याग दिये जाएँ। सेनापति कुक्कुट ने अपने प्रहारों से हिरण्यगर्भ को बहुत घायल कर दिया। तभी सारस ने अपनी लम्बी चोंच से कुक्कुट पर प्रहार किए और अपने पंखों से राजहंस को जल में ज़ोर से ढकेल दिया। तदनन्तर सारस ने बहुत पराक्रम दिखाया। परन्तु अन्त में सब पक्षियों ने मिलकर सारस को मार डाला। चित्रवर्ण किले की समस्त धनराशि को लेकर जयघोष के साथ अपनी राजधानी को लौट गया। राजकुमार बोले : सारस कितना योग्य था, जिसने अपने प्राणों की भी चिन्ता न की और स्वामी को बचाया। विष्णुशर्मा : भगवान् उसे स्वर्ग प्रदान करे। ।। तृतीय खण्ड समाप्त ॥