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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१२२

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सन्धि १२७ रक्षा के उपाय सोचने लगा। वह हंसो से बोला : मित्रो, तुमने तो धीवरों की बातें अपने कानो से सुनी है। अब तुम्ही कोई उपाय बताओ। मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो मेरा काल ही सामने खड़ा है । हंस बोले : इन धीवरों को कहने भी दो। प्रात काल जैसा योग्य समझा जाएगा किया जाएगा। अगर तुम्हें मरना ही नही होगा तो धीवर क्या, बलवान-से-बलवान भी तुम्हारा वाल बांका नही कर सकता। कछुआ: मित्रो, ऐसा न कहो । इन वातो का जो परिणाम मैंने देखा है वह मै सुनाता हूँ।