हितोपदेश मन्त्री : अतएव मैं कहता हूँ कि श्रीमान् उनसे मैत्री कर ले। हिरण्यगर्भ का दूत आगे बोला : महाराज, इसी भॉति चित्रवर्ण के मन्त्री गृद्ध ने बार-बार चित्रवर्ण को समझाया । दूत के मुंह से शत्रुपक्ष का समाचार सुनकर हिरण्यगर्भ अपने मन्त्री से बोला: मन्त्रिन्, तुम्हारी क्या सलाह है। हमें चित्रवर्ण से सन्धि करनी चाहिए अथवा नही ? मन्त्री : महाराज ! चित्रवर्ण इस समय विजयगर्व में फूला हुआ है। अतः वह सीधी तरह से सन्धि के लिए प्रस्तुत न होगा। हिरण्यगर्भ : तो क्या किया जाये ? मन्त्री : महाराज, सिंहलद्वीप का महाबल नाम का सारस आपका परम मित्र है। आप उसे सूचना चित्रवर्ण पर चढ़ाई कर दे । इस भांति बराबर का शत्रु पाकर चित्रवर्ण स्वयं आपसे सन्धि करने आयेगा। यह सुनकर राजा हिरण्यगर्भ ने दूत बगुले को महाबल सारस के पास पत्र देकर भेज दिया और चित्रवर्ण के लिए दूसरे गुप्तचर नियुक्त कर दिये। दे कि वह x x x मन्त्री के मुंह से सन्धि की बात सुनकर चित्रवर्ण ने मेघ वर्ण को बुलाकर पूछा, मेघवर्ण ! हिरण्यगर्भ कैसे राजा हैं ? उसका मन्त्री कैसा है ? मेघवर्ण : महाराज, हिरण्यगर्भ तो दूसरा ही युधिष्ठिर
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