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धूर्तों का चक्कर आत्मौपम्येनयो वेत्ति दुर्जनं सत्य वादिन, स सदा वञ्च्यते धूर्ते . जो दुर्जनो को भी अपने ही समान सत्यवादी समझता है, वह धूर्तो के हथकण्डों का शिकार बन जाता है। o . महर्षि गौतम के वन में एक ब्राह्मण रहता था। उसने एक बार यज्ञ करने का विचार किया। अतः वह यज्ञ की सामग्री लेने नगर गया। वहाँ उसने यज्ञ की अन्यान्य सामग्री के साथ-साथ बलि देने के लिए एक बकरा भी लिया। बकरे को कन्धे पर लादकर वह आश्रम की ओर चल दिया। मार्ग में उसे तीन धूर्तों ने देखा । बकरे को देखकर उनके मुंह में पानी भर आया। उन्होने निश्चय कर लिया कि जिस भाँति भी हो, हम इस ब्राह्मण से यह बकरा अवश्य ले लेंगे। यह निश्चय करके तीनों एक-एक कोस के अन्तर पर खड़े हो गये । ज्यों ही वह ब्राह्मण एक धूर्त के पास से बकरे को कन्धे पर लादे निकला, धूर्त बोला
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