मित्रलाभ चित्रग्रीव के बुलाने पर हिरण्यक अपने विल से बाहर निकला। अपने, मित्र को आपत्ति में देख वह बहुत दुखी हुआ और बोला मित्र चित्रग्रीव ! यह जाल तो बहुत बड़ा है और में एक छोटा-सा चूहा हूँ। इसलिए सारे जाल को काटना तो मेरो शक्ति से बाहर की बात है। हाँ, मै पहले तुम्हारे बन्धन काटना हूँ। इसके बाद तुम्हारे साथियो के वन्धन यथाशक्ति काट दूंगा। चित्रग्रीव . मित्र, यह अन्याय है, अपने आवितो की चिन्ता न करके पहले अपना उद्धार कराना स्वार्य है। नुन बारी-बारी से सबके बन्धन काटते चलो, जब मेरी बारीश जाये तव मेरे बन्धन भी काट देना। हिरण्यक वोला : मित्र, मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुम चिन्ता न करो। जब तक मेरे दाँत नहीं टूटते, बन्धन काटता ही रहूँगा। J हिरण्यक ने धीरे-धीरे सब कबूतरों के बन्धन काट दिये। बन्धन-मुक्त होकर सव कबूतर उड़ गये । x x x X लघुपतनक हिरण्यक और चित्रग्रीव की इस मंत्री से अत्य- धिक प्रभावित हुआ । वह भी हिरण्यक के विल के पान गया और वोला: मित्र हिरण्यक ! तुम धन्य हो। तुम्हारे जैसे मित्र ममार मे ढूंटने पर भी नहीं मिलते ? मै चाहता हूँ तुम मुझे भी अपना त्रि बना लो। तुम कौन हो जो मित्र बनना चाहते हो? हिरण्यक बिल भीतर से ही वोला। मै लघुपतनक नाम का कोजा हूँ। LAV ----
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