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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१४८

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सन्धि १५५ फिर क्या था? सर्प ने धीरे-धीरे सव मेंढकों को खा लिया। यहाँ तक कि मेंढकों के स्वामी को भी खा गया। x x x x S यह कथा सुन कर कौवा गान्त हो गया। मन्त्री बोला: महाराज समय पड़ने पर तो शत्रु को भी, चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो, कन्धो तक पर बैठा लेना चाहिए। फिर यह राजा तो बड़ा धर्मात्मा एवं सुशील है । अतः इससे संधि करने में कोई भी हानि नहीं। उसी समय जम्बुद्वीप से एक गुप्तचर ने आकर चित्रवर्ण से निवेदन किया: महाराज, सिंहलद्वीप के राजा सारस के सैनिकों ने जम्बुद्वीप को घेर लिया है। गृद्ध मन-ही-मन वोला : सर्वज्ञ तू कितना नीतिन है ! तेरे लिए यह योग्य ही था। राजा क्रोध में भरकर वोला : मन्त्री, ना को तैयार करो। मैं जम्बुद्वीप चलकर उस दुष्ट सारस को देखता हूँ। मन्त्री : राजन्, मनुष्य को कभी भी विना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए । इसी विषय मे मै आपको एक कथा सुनाता हूँ। Th