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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१४७

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१५४ हितोपदेश जीवन की समाप्ति का द्योतक है। कपिल ने इसी भाँति कौन्डिन्य को बार-बार समझाया। कपिल के उपदेशों से वह इतना प्रभावित हुआ कि वन जाने को प्रस्तुत हो गया । समय देखकर कपिल ने पुनः आग्रह किया: कौन्डिन्य वन जाने से क्या लाभ ? लोभ-मोह में ग्रसित पुरुषों के लिये तो वन जाना कोई लाभ नहीं देता। उन्हे वहाँ भी लोभ-मोह सताया करते है। जिसे इन लोभ- मोहादि से निवृत्ति है उसके लिए घर ही वन है। कौन्डिन्य : आपका कहना सत्य है। कुछ समय विचारकर फिर कौन्डिन्य बोला : हे पुत्र-घाती सर्प, मै तुझे शाप देता हूँ कि तुझ पर मेढक सवारी करेंगे। कपिल के उपदेशों से वैराग्यवश होकर कौन्डिन्य ने संन्यास ले लिया। उस दिन से मैं यहीं पर मेंढकों को सवारी देने के लिए रहता हूँ। यह सारा वृत्तान्त मेंढक ने अपने राजा को सुनाया। वह अपने साथियों को लेकर सर्प पर सवार हो गया। सर्प भी विचित्र चाल से सैर कराने लगा। अगले दिन सर्प धीमी चाल से चलने लगा। उसे इस भांति धीरे-धीरे चलते देखकर मेंढकों का स्वामी वोला : सर्प, आज तुम धीरे-धीरे क्यों चल रहे हो? सर्प : महाराज खाने को कुछ मिलता ही नहीं। ऐसा सुनकर मेंढकों का स्वामी बोला : हमारी आज्ञा से तुम मेंढकों को खाया करो और हमें सैर कराया करो। M