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३ करनी का फल वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् । . C सामने दव-ना मधुर बोगनेवाले और पील पीछे विर भरी छरी मारने वाले मिन को छोड देना चाहिए। . . C मगध देश मे चम्पारन नाम का विस्तृत वन है । किसी समय उस वन मे एक कौआ और एक हिरण रहा करते थे। दोनो घनिष्ठ मित्र थे। हिरण स्वेच्छा से वन में निश्चिन्त भ्रमण करता था । एक दिन वह मस्त होकर घूम रहा था उसे एक सियार ने देख लिया। हिरण के पुष्ट अग और मासल गरीर को देखकर सियार के मुंह में पानी भर आया। वह जानता था कि हिरण के साथ-साथ दौड़ना या उसमे लड़ना सम्भव नही, अतः नीति से काम लेना चाहिये । इन लिए हिरण के पास जाकर वह बोला : मित्र, आप सकुशल तो हैं । तुम कौन हो? मै तो तुम्हे पहचानता नही, हिरण आश्चर्य से पूछा। ( २१ )