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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/४१

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१ नीतिकुशल सियार वर्धमानो महान् स्नेहः मृगेन्द्र वृषयोर्वने पिशुनेनाति लुब्धेन जम्बुकेन विनाशितः । . . सिंह और वैल की बढ़ती हुई मित्रत को लोभी और चुगलखोर सियार ने नष्ट कर लिया। . . o दक्षिण दिशा में सुवर्णवती नाम की नगरी है। किसी समय इसी नगरी में वर्धमान नाम का धनी व्यापारी रहता था। उसके पास अतुल धन-राशि थी। फिर भी वह/नो- पार्जन में लीन रहता था । एक दिन उसने नन्दक और वक