हितोपदेश होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । अत: अब मैने निश्चय कर लिया है कि शीघ्र ही इस वन को छोड़- कर किसी दूसरे वन मे चला जाऊँ। दमनक : महाराज, उस भयानक गर्जना को मैने भी सुना है । मैंने अपने जीवन में तो ऐसी गर्जना सुनी नहीं। पर महाराज आप वन छोड़कर क्या करेंगे? पिगलक : वन छोड़कर युद्ध की तैयारी करूँगा और इस पर विजय प्राप्त करूंगा । मै अपने शत्रु को जीवित नही देख सकता। दमनक : महाराज, वह मन्त्री योग्य नही होता जो स्थान छुड़ाकर फिर युद्ध करने की मन्त्रणा दे। यदि आपकी आज्ञा हो तो मै ही इस भार को अपने कन्धों पर ले लूं और उस बलवान से आपकी संधि करा दूं। पिगलक : यदि तुम ऐसा कर सको तो मै तुम्हें प्रधान- मन्त्री-पद दे दूंगा. इतना कहकर पिगलक ने बहुत-सा पुरस्कार देकर दमनक और करटक को विदा किया। मार्ग मे करटक दमनक से बोला : दमनक, स्वामी का कार्य किये बिना इतना अधिक पुरस्कार लेकर तुमने अच्छा नही किया। दमनक मुस्कराकर बोला : भाई तुम चुप भी रहो । मैं स्वामी के भय का कारण जानता हूं। वह हुंकार बैल की थी। तुम जानते ही हो कि बैल हमारा खाद्य पदार्थ है। फिर उससे कैसा भय ? करटक : यदि तुम यह जानते थे तो तुमने महाराज को
पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/५१
दिखावट