पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/५२

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सुहृद्भेद ५७ यह सब पहले ही क्यो नही बता दिया ? दमनक फिर हंसा और बोला : भाई तुम तो निरे भोले हो! यदि हम महाराज को यह पहले ही बता देते तो हमे इतना पुरस्कार कैसे प्राप्त होता? स्वामी को कभी भी निश्चिन्त नही करना चाहिए। ऐसा करने से सेवक का वही हाल होता है जो दधिकर्ण का हुआ था। करटक । वह क्या। दमनक : सुनो।