४ स्वार्थ का संसार निरपेक्षो न कर्त्तव्यो भृत्यैः स्वामी कदाचन । . . सेवक कभी भी स्वामी को निरपेक्ष न करे। . . . उत्तर दिशा में अर्बुद शिखर नाम के पर्वत पर दुर्दान्त नाम का सिंह रहता था । जिस गुहा मे वह रहता था, उसी में एक चूहा भी रहता था। शेर जव आहार करके उस गुहा में विश्राम करता तो वह चूहा अपने विल से निकलता और सिंह के केशों को कुतरा करता । शेर जव सोकर उठता तो अपने केशों को कुतरा देखकर उसे बहुत क्रोध आता। पर महान् पराक्रमशाली होने पर भी वह चूहे का कोई भी अपकार नही कर सकता था । अन्त में एक दिन चूहे को घूमते देखकर उससे न रहा गया। उसने चूहे को पकड़ने के लिए अपना पञ्जा बढ़ाया। पर चूहा उसका पञ्जा बढ़ने से पहले ही विल मे जा चुका था। वह खीज उठा। कुछ समय बाद उसने सोचा, छोटे शत्रु का महान् पराक्रमी भी कुछ नही विगाड़ सकता। उसके नाश के लिए उसके समान ही कोई सैनिक होना चाहिए। (-५८ )
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